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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-दि में ४६ पद रुघा-कृच्छ ॐ गारविषयक, ४४ पद शिक्पार्कली हैं, ३५ पड़ विदेध दिवों के और अंत में २० पद कूट और पहेखि के हैं। आपको इविता में दिशेएनया श्रृंगाररस प्रधान हैं। इनके अषः बिहारी है और इह परम प्रशंसनीय हैं। इनकी कविता में शेषक की असाधनों से बहुत-से छंदोभंग हो गए । इनके कुछ पडू माकृत-मिश्रित भास के भी मिलते हैं। भाषा-कविता के विचाइ ॐ इम, इन्हें सेनापति मैं प्रेस का समझते हैं। उढाइएछ– . :....। | इस बसंत समय भद्ध पाति दछिन पक्नु बहु धीरे । सपनड्डू रूम बच्चन षक भाई मुख संदुरे कर ली है। तोहुरे बदन सम चाँद होऋथि नहिं जैयो जतन बिंह देला ।।

  • अट बनवल नव ऋय दैयो तुलित माहें भेजा।

लोचन तृय अमलं नहिं भैसक से जर के हैं डाने । में फिर एवाय तुकैदहजल भय पंकज निज़ अश्मने । अनुष्टि दिग्दतिं सुन दवङ्गौ भति ईसभ लछसि ससाने । उद्धा शिकसँह रूद नारयण खिमा दुइ प्रति माने । . इदि वेलिड एथ नगरि सजली अागरेि सुवुधिं यानि ।। अनलदा सम सुदले सजन वह नियमावड आनि ३ . हल्ति मुनि इँ चइत सजी देखइत रजकुमार क्किा यहद खोजिदि सजनी पाय पदारथ रे। • नवा क्सन त धैरटेल सजनी सिर लेल चिंकुर सम्हार . र अमर प्रिंक्य स्म सजनी भैसृल पंख ऐसहर।। ...केछि अन्य कटे युर अर्छि सनी लन्दन अङद्ध धर; यति अाख स्क्रंच गुन्द्र पाच वर्भर है " अतः सुख साटायल कुवत छुइङ निकट अब इह ना। र डि छिन् किम ये हैं मुहं दुश्सन हो पुजमति गरे ।