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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-विनोद अहनंद झ्वरूप है सरीर जिन्द के 3 ब्क्ष्न्हिीं के नित्य राह में भरी क्षेधि अरु आनंदम्य होतु हैं । मैं हु हौं गोरिष सो मझुंदर नाथ इंडक्छ करत हैं। हैं कैसे वै मझुंदर नाथ । छात्मा जोति निश्क्त है अंतहकरन जिनि ॐ अरु मृल द्वार है छह सङ्ग जिनि नीं। वह जानै । अरु जु काल कल्प इनि की रचना तस्य जिनि यो । सर्यक्ष को समुद्र तिनि छौ मेरी दंडवत ३ स्वामी तुमैं तो सन शुर। असे सौ स्थि संबद सुछ पुछि दया र हित्वा मदिन करिव रोस } . . .. पराधीन उपरांतिं बंधन नाही सुधीन उरांति मुकलि हीः । झाई उपरांति पाप नाहीं अचाह उपराइढ़ि पुनिं नाही हम उ होली मख नाहीं निक्कम उपराईति निरमलं नाही दुइ उपरांत कवधि दाँही निरोथ उपरांति सवधि नाही घोर उपराईति मैनु । नाही नारायको उपराईति ईसट नाहीं निरंजन उपरांईन ४ाण नाम- ; नियुप्रभ उपाध्यथि छैन । अं–{१} गौतम रासा, (२) हंसवच्छरास, (३) शीलराट । - दाल--१४१२१ | थिनथ विवेक बिंचार सार उछा अशह मनोहरु । खात हाधं सु प्रमाको देह रूपिहिं रंभाम् । यह इयर घर जिमि पंकज वाले पाडिय; वेजिहि हुदा इंदु सूर शाक्कासि अमाय । विहि भय श्रलंग करवि भेण्डि निवाडिय : ओरिम में गंभीर सिंधु बांका भय रश्चिय ।

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