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मिश्रबंधु-विनोंद

निबंधु-विनोद .. नुश्न विना नरात ही ऐसी हूँ किद्धी ; हिंतू तुरुन्छ अनेक हुए ६ सिद्धि न सिद्धी । इनि साह्र धरि थ्थ धन्य जस बासने पायो ।

  • ज्यों, सरु छुट्टै प्रश्न उत्र अप सतिग्रो आयो ।

दिने सुसथ्य य साह चै मनु नछित्र नभ में टस्यो । .. शोरी नरिंद कवि चंद कई आय धरप्र धम पह्यो । जहरूइन की कविता से उदाहरण-स्वरूप दो छंद ऊपर दिम जद चुके हैं और मुं-एक छंद नीचे लिखे जाते हैं । यथा- पस्यो संभ राय से उद्गः ; मनौ मेर श्री किये गुंग झेमा । जनै बार बार कुरान साच्चो ! जिने भीज के भीम चाबुक्क मल्लयो । जिलें मंजि बैचात है बार बंध्यो : जिनें नाहर आई गिरनार संध्यो । जिने दि थट्टा सुकळ्यो किंठं । जिन भजि महिपाल रिन अंभ इंदं । जिलें जीचि वह ससञत्त अनी : जिनें भेजि कमधञ्च रक्खो जु पानी । जिने अंजि कुंडा सुज्जैन मांही ; परंमार संग पुत्री बिदाइी । जिने बँरि कनकव साझा कीयो ; जिने गुरा लेय हम्मीर दीयो।

  • की स्वज बालुका येत छायो । जिर्ने माहिरा पंग संजोग लाग्यो ।

| इस क्लवले लेख के लिखने में हमें झाबु श्यामसुंदरदासळी से बहुत सहायता मिही है। • जैसे चंद के पहलेवाले सब कवियों के विषय में निश्चय बहुत कम हैं, वैसे ही जत्द्धन के कुछ ही पीछवाले कुछ छवियों के बारे में ( १ ) भाग्य कस इस काल का भी भुक कवि मोहनलाल द्विङ सं० १९७६ के खोज में मिला है। इसका ग्रंथ पत्तल है जो सं० १३४३ में बना है। यह अलद जेल सथुरा के पंडित श्यामलाल क' के रू है । इसमें सवाल के विवाह में बंद के ज्योन्नार के इन उत्कृष्ट छु में है। ::::::: :