पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२३३

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अस्-िझहलङ झी मका , अरु केहि छोटी-छोटी बालक के जामने छ श्रम स्वीकार केलहरू, ती किं कस्ट में लिया हैं, झल्ला -धजन्य का शुद्ध अझ समेत उहा ला सुद्र इक्क का बर लि यह पंवत् स्याए संतु का ३० वर्ष कई छ । बहू को ल वर्ष छे का, हुम्ल निर्विवाद काग्छ ऋचे तक स्थिर बर्फी हो सका है, अदृ इसके का ला निन्द्र है। -असे बटन धोएई गई है ही इनक्की पहङ्क अईल का शशा है। इसमें अल-से शुढे के कई कई ॐ र भिख-भिन्न -शिवा आदि ॐ वाकन इस बहुल हैंमौहर हुए हैं और *दि, मंत, इश्क, टु, अ, इकर, रिछा, बैंसे, कि, कान, इर्ष, श, अञ्जन, राज्याभिषेक, दिवाइ, स्मृति ई सी विषय ॐ क्षेद के कुछ रिक्ति से सक -एक किए हैं। इफसर, रूपक शद्धि कर झी सम्हच्रेत चंद्र ने अपने ऋष्य में अच्छे प्रकार से कि हैं। इस में प्रधान नृङ, सृन्या व झि को वन है और विश्रयः वा अन्न ग्रंथ हैं। चंद ने आदिम सका है। भएषः छह हर किया, जिसमें संद्र चैट श्र के दरिंकू ज, रसन्नर, वकी, माझी, होलसही और जैकी का का फोटु है | इन्होने दिदिक्ष होड वे हैं छप्प को विशेष अफर दिया है । कुल मिलाकर चंद्र शुक्ल न ही उत्कृष्ट कवि हैं । हरित नक रंतिं छपे क्षय हो ति दुछ गई हू वाहा । ।