पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२२३

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अः छ बरु पु को दि इस आ य ३ र कृ वि . को वा अरू व्लक्क परम सामरिक नै हु भी कुछ अच्छा जर हुई हैं। अपने ऋद्ध कों का माना है, किंतु क्लिा पुन्ह शक्य झुर कोई झब्द का ही हो कर ; चिन्ता पुर। क्य तु किसी के दृ३ त्र का ईंध ई ई ई सुकन्यार, फिर इसमें झरों कि अनंद कट्स में अदेगा ? इसका शव अह है %ि पंक्ति के भन्नु झन्ध अन्तःल' रम्ह अन्याय % द्र है ही अक्का है, सन्द र, दंतु त्रि-थ * बह-7 हेस छैप्शन है, जो जज श्रब्यू- अर' से उम्रद हैं, हर हुन् कई अर्थ- द र ह इन चाय ॐ त में हू ड़ा ऊ शकतो, यदि यह मान्य हैं आँछ भूख करना कब की व हैं ? हुन्छ कार से शुद्धता छ , हुनु हो । है । १६ } इोय छ रश्य : य F३ सोय । " वाक्य दम्र उब्द-मुदाय ॐ कहते हैं जिसमें कनों और क्रिया अवश्य छ र ४ को पूरा करय प्रकट करने में समर्थ हो । इसमें शब्द्ध-असमुदाछ और अझै दुई देते हैं, परंतु माग्दो के अर्थों में शब्द-समृदु के शुष हो वाक्य के सुख-य ने हैं कई छाया के कुछ-दो के छू का हैं। यही ईश्वर थुछिनु : अझ यह हैं । एक्काई पिदा में स्पष्ट ब्द-चमत्कार ही क्रीं न कान ला है, न कि कम -मयत

  • अय्यन हो वाली हैं।

१६} ग ते अड्छ कुछ वन दरु अईं कच्चि { । है। इसमें एक्य न डर छवि हैं तब्ट्र लिखा है, ' अनुचित हैं, क्योंकि शब्द है इक्य का धुरा इजह नहीं पाया त ! फिर