पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२१७

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जिसमें है के अधिकार कंद झिनै बढ् । संस्कृत कठिन्द होने के क्रार हुई * भाड़ा न रडू की और इ* अर्थ

  • प्राकृत छोलते हुये । हुप्त प्रकार संन्। केवल पुलों की भी

कुछ आई आर खान्छ में उसका ब्यकार में रहा । अक्षः रु- छह की भय से उसकी बयान: उठ गई । जैसे-जैसे सस्य शंखन्छ, का --कैसे दूसरे प्रकृत अशी पलं का विकास होत ना, और समय पर श्री, शौसेदः, मराठो श्रादि दशके कई विभाड़ हो र । इन्टु अंतिम अधों ॐ अझ प्राकृत कतै हैं ! बास्त्र ॐ मह छुल के दो रूप हैं, एरंतु अब इसथ रूम को फाळी, और प्रथम को सुनी त कहते हैं। प्रति ॐ तृय रूय के के निकट रूमथ के छ बोले ६ । ल्लभाषा पश्चिम विभाग की रन ऋत' रूपांकर है म पु माछा माथी की ३ । भाष्का दसैन और मगध के क्रिया से अनी हैं। हिंदी के प्रेलियों में पूर्वी, माध्यमिक र रच-मास तुन को नै बिलाशिद किया है। इनकें अतिक्क दाजपुदान तथा पंथी माओं का ठे पश्चिम-नामक छ र अझन विभाग इमारी समझ में होः अद्दिश् । इन कुछ-कुछ संपर्क कुढी आदि भाषा में हैं। हिँदी के मुख्य उपरिंभा ॐ मैथिली, मगही, मुफपुरी, अचई, वली, छ उई, रब्युतादी, ब्रज- , अछा, बु दे, दाँग, दहि, लड़ देख कर इन उपङ विकासे में शक ई भी नहीं हुआ, क्रन् प्रत्बंछ का शाब्दिों में धीरे धीरे ला रहा । इक्क देश की भाषा स-अम प्रति इददर्ती हुई अधिक दूर कम किकुद्ध अलरी भाष्य में परिवर्दिउ हूँ जाते हैं, परंतु किन्हीं सिद्धे हुए 8 ॐ मा हेर-फेर की जन पत्र ! अर्ध भा को बन्ली से