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मिश्रबंधु-विनोंद

सिश्रद-विनोद परमात्मा इसमें सदा तिरोहित रहता है । अज्ञान-तिमिर ॐ' घटल में एईं समस्त जीव दि उसके प्रकाश से वैसे ही वंचित ये रहे हैं। ॐ हिरे से सूर्य ढेपे रहते हैं। इस परदा के हटाने का एक-मत्र उपाय बन्न नांजनशलाकी है जिस जुनजन-शुलझा ले नैट्स के उन्मीलिद होते ही परदा दूर हो जाता है। • गौरीशंकर-हीराचंद ओझा (आधुनिक लेखक ) हिंदुओं का इष्टि-णि सदा से निवृत्ति-मारी की तरफ़ रहने के कुछ इन्होंने प्राचीन काल से ही वास्तविक इतिहास की ओर ध्यान नहीं दिया, और मनुष्यों के चरित्र अंकित झरने की अपेक्षा . ईश्वर के अवतार या देवी-देवतः ॐ वर्णन ब्रने में ही अपनी लेखनी को कृतार्थ समझा । इसी से हमारे यहाँ के अनेक राओं, धनः, महाराऊँ, विद्वानों, दीर पुरुर्षों आदि के केवल चरित्र ही नहीं मिलतें, वरन् उनका निश्चित समय भी अज्ञात हैं। .. गदाधरसिंह (आधुनिक लेखक ). • संसार की स्थिति में चुद्ध एक ऊँचे और , अवश्य स्थान हा अधिकार रखता है। मनुष्यत्व के सर्वोच्च प्रभाव प्रगट होने की सार- क्षेत्र हो। एक महान प्रदर्शनी है। दिदा युद्ध के मनुष्य-आति की उन्नति का मार्ग रुक जाता है और वह जाति अष्ट होकर मृत पदार्श- बाद में लीन हो जाती है। - श्यामसुदरदास ( आधुनिक लेखक} ... अंथकर्ता बंदोजन बंशज खुमान अथक मान रूचि हैं जो बिक्रके अाश्रित थे। ये कवि वसहरी आम के रहनेवाले थे। इनके पूर्व सहाराज छत्रपज के आश्रित थे और चे ढोंग क्रमशः उही अंश के . आश्रित होते अश् : . ::::: .-. • अन्नतः द्विवेदी मजदुरी इस्त्रर्गवासी अधुनिक स्वयक) अरे विचार में राम में सी-क्सिज-अहित. घोरपथः ।