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मिश्रबंधु-विनोंद

हनुमान कवि मणिदेव के पुत्र थे । ये कविता अच्छी बनाते थे। गौरीदत्तजी का हिंदी-प्रेम एवं उत्साह प्रशंसनीय था । इन्होंने भी एक कोष बनाया । पंड्याजी ने रासो आदि प्राचीन विष्यों पर अच्छा श्रम किया। अयोध्याप्रसाद खत्री का खढ़ी बोली पद्य की और सराहनीय श्रम था ।

         शिवसिंह सेंगर

शिवसिंह सेंगर ने हिंदी-कविता का पहला इतिहास-संबंधी ग्रथं लिखकर जो उपकार किया, उसकी जितनी प्रशंसा की जाय,थोड़ी है । इनके पहले हिंदी-इतिहास का कहीं पता तक न था पर इस महापुरुष ने बड़े श्रम और खोज से प्रायः एक हज़ार कवियों का विधिवत् पता लगाकर उनके जीवन-चरित्र, कविता-काल और उदाहरण दिए हैं। अवश्य ही इनके दिए हुए सन्-संवतों में कुछ गड़बड़ हो गया हैं और उनमें कई स्थानों पर अशुद्धता आ गई हैं। एवं और भी भ्रम के उदाहरण यत्र-तत्र पाए जातें हैं, पर किस ओर प्रथम श्रम करने में ऐसा होना स्वाभाविक ही है । कुल मिलाकर शिवसिंहजी का ग्रंथ अत्यंत सराहनीय हुआ है। डॉक्टर ग्रियर्सन ने अपने Modern Veroacular Literature of Hindu stan में प्रायः इन्हीं का अनुवाद-सा कर दिया, अथवा इनके आधार पर ही अधिकांश में लिखा है। अपनी ओर से डॉक्टर साहब ने अधिक नहीं लिखा है, पर उनका भाग्य कुछ ऐसा हैं कि ठाकुर साहब के यश को कई अंशों में उन्होंने अपना लिया है । हमारी समझ में शिवसिंहजी का हवाला न देकर ग्रियर्सन का नाम ले-लेकर चिल्लाना एक प्रकार की भूल है। मूल-ग्रंथ लिखनेवाले को पीछे छोड़कर उसके अनुयायी-मात्र की ओर दौड़ना अनुचित है। तात्पर्य यह कि शिवसिंहसरोज हिंदी मे एक अभूतपूर्व ग्रंथ-रत्न है। ठाकुर साहब ने कुछ कविता भी की है।