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मिश्रबंधु-विनोंद

कृष्ण,लालबिहारी मिश्र,सुधाकर द्विवेदी, महेश,प्रतापनारायण मिश्र,भानु,शिवनंदनसहाय, उमादत्त,रामनाथ,सीताराम लाला,दीनदयालु शर्मा,महावीरप्रसाद द्विवेदी,ज्वालाप्रसाद मिश्र, मदनमोहन मालवीय,श्रीधर पाठक,युगुलकिशोर मिश्र,विशाल और गौरीशंकर-हीराचंद ओझा इत्यादि अनेक उत्कृष्ट गद्य और पद्य-लेखक हुए और उनमें से बहुत-से वर्तमान हैं । ऐसे महाशयों की गणना इस उपविभाग में इसी कारण से हुई है कि इनकी रचनाओं का समय संवत् १६४६ के पहले से प्रारंभ हो जाता है। इस नियमानुसार हमने इस इतिहास में सभी ठौर कवियों के स्थान नियत किए हैं। इस बीस वर्ष के बीच से ही गद्य का ज़ोर बढ़ने लगा था,तो भी पद्य-लेखकों की कमी न थी और कवि भी कई अच्छे-अच्छे हुए ।

           हरिशचंद्र
भारतेंदु हरिशचंद्र ने संवत् १६४१ पर्यत प्रायः 

१८ वर्ष तक हिंदी में जैसा चमत्कार दिखलाया, वैसा हम लोगों को प्रायः सवा सो वर्षो से देखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था। देवजी की मृत्यु के प्रायः १०० वर्ष पिछे विद्यापीठ काशीपुरी में इनका जन्म १६०७ में हुआ था। इनका कविता-काल १६२३ से प्रारंभ हो जाता है । इस सवा सौ वर्ष के बीच में भाषा में अनेक परमोत्कृष्ट कवि हुए,पर नवरत्नो में परिगणित हो सकने का सौभाग्य किसी को भी प्राप्त न हो सका । हमारे भारतेंदुजी ने केवल ३४ वर्ष की । अवस्था पाकर भी ऐसा अलौकिक चमत्कार दिखलाया कि इनके मुंह से सभी लोग मुग्ध हो गए और सबोंने मिलकर इन्हें भारतेंदु की उपाधि से विभूषित किया । पद्य में भी इन्होंने बहुत ही विशद कविता की,पर गद्य के ये सबसे बड़े पोषक और उन्नायक हो गए हैं। वर्तमान गद्य का इन्हें जन्मदाता कहना