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      संक्षिप्त इतिहास-प्रकरण     १२५

दूलह त्रिवेदी (१८०२) की गणना हिंदी के नामी आचार्यो और कवियों में है। अलंकार के ये महाशय मुख्य सूत्रकार हैं। जैसे पिंगल में मनीराम हुए हैं,वैसे ही इस विषय (अलंकारों) को अत्यंत सूक्ष्म रीति से लक्षणों और उदाहरणों सहित दूलह ने खूब ही साफ कर दिया है। सरबूराम ने दोहा-चौपाइयों में जैमिनि-पुराण की साधारण तथा अच्छी रीति से रचना की । शंभुनाथ मिश्र ने नायिक-भेद-विष यक कविता की । भगवंतराय खीची कवियों के कल्पवृक्ष एवं स्वय सुकवि थे। शिवसहाय दास ने पखाने लिखे हैं। पखाने शब्द उपास्थान का अपभ्रंश है। ऐसी कविता में लोकोक्तियाँ कही जाती हैं। इनके साथ दास का समय समास होता है। अवश्य ही इसमें नवरखोवाला कोई कवि नहीं हुआ (यद्यपि यह स्मरण रखना चाहिए कि इसमें स्वयं देवजी बहुत काल तक कविता करते रहे थे), पर प्रथम श्रेणी के दो भारी कवि,तथा अन्य कई एक उत्कृष्ट लेखक थे । कुल मिलाकर यह समय समुज्ज्वल था। इस काल में आचार्य बहुत हुए और नायिका-भेद की प्रथा द्दढ़तर हो गई,एवं शृंगार-कविता की ओर कवियों की प्रवृत्ति विशेषतया बढ़ी ।

         सूदन-काल 

सूदन-काल (१८११-१८३०) में मुख्य कवि गण के नाम ये हैं-बोधा,सहजोबाई,गणेश, मनबोध झा,अक्षर अमन्य,हंसराज,बैरीसाल, किशोर,पुखी,रतन,दत्त,नाथ,ब्रजवासीदास, शिवनाथ द्विवेदी,मनीराम मिश्र,मनभावन और तीर्थराव। बोधा एक बड़ा ही प्रेमी कवि है और इसकी कविता बड़ी ही सरस एवं प्रेम-पूर्ण है। ऐसी सूक्ष्म दृष्टि बहुत कम कवियों में पाई जाती है। बोधा ने भाव और भाषा दोनों का अच्छा चमत्कार दिखाया है और मव वर्णनों में प्रेम ही प्रधान रक्खा है । इनका कविता काल १८३० से प्रारंभ होता है। सूदन एक बहुत बढ़िया कथा-प्रासंगिक कवि है ।