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      संक्षिप्त इतिहास-प्रकरण     ११६
कवींद्र (२०६२) ने नायिका-भेद का वर्णन किया और कुछ उद्दंड वीर छंद भी अच्छे रचे। इनकी भी कविता परम ललित है । सूरति मिश्र उत्तम कवि, उत्तम टीकाकार और उत्तम गद्य-लेखक हैं। अापने कई गंभीर ग्रंथ रचे हैं। महाराजा अजीतसिंह महाराजा जसवंतसिंह के पुत्र और एक सुकवि हैं । प्रियादास ने १७६६ में नाभादास-कृतभक्तमाल की एक उपयोगी छंदोबद्ध टीका रची। इसने महात्माओं की जीवनी जानने में समाज का अच्छा उपकार किया। आदिम देव-काल में विशेषतया देव, लाल और कवींद्र उत्कृष्ट कवि थे, तथा भूषण,मतिराम,हरिकेश आदि भी वर्तमान थे। 
       माध्यमिक देव-काल
माध्यमिक देव-काल (१७७१ से १७६०तक) में घनानंद,श्रीपति,सीतल,नागरीदास(महारासा),

भूधरदास,कृष्ण,जोधराज,गंजन,महबूब,प्रीतम और हरिचरणदास प्रसिद्ध कवि थे। घनानंद (१७७०-१८) में भक्ति और प्रेम-रसार्णव की अटूट लहरें लहराई हैं। ये बड़े ही प्रेमी पुरुष थे और इनकी रचना बड़े-बड़े कवियों को मोहित करती है। भारतेंदु बाबू हरिश्‍चंद्र घनानंद की रचनाओं के बड़े प्रेमी थे। सुबान-नामक एक सुंदरी पर घनानंद आसक्त थे। उसकी प्रशंसा में इन्होंने कितने ही उत्कृष्ट छंद रचे। श्रीपति दशांग-कविता के एक भारी आचार्य थे। इन्होंने भी कुलपति की भाँति बढ़ी गंभीरता से रीतिवर्णन किया। इनकी चोरी बड़े-बड़े कवियों ने की है । भाषा के परमोत्कृष्ट आचार्यों में इनकी भी गणना है। सीतल ने अपनी पूरी रचना खड़ी बोली में की। वह बड़ी चटकीली तथा उत्तम है। इनसे पहले और किसी कवि ने ऐसी उत्तम भाषा में खड़ी बोली की रचना नहीं की, और न अब तक भी कोई इनके समान रचना करने में समर्थ हो सका है। इनका रचा हुआ चार भाग गुलज़ार-चमन सुना जाता है, जिसमे केवल एक हमारे पास है, भाग्य वंश द्वि०वै०खो० में इस ग्रंथ की