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मिश्रबंधु-विनोद

भाषा को किसी कवि ने इतना भृषित नहीं किया है। इन्होंने दशांग-काव्य पूर्णतया कहा है और उसके अतिरिक्त काव्य के अनेक नए अंग स्थापित कर दिए हैं । निदान उपर्युक्त दो महाकवियों को छोड़ इनका पद हिंदी-साहित्य में सभी से ऊँचा है।

         पूर्व देव-काल 

इस काल में छत्र कवि ने महाभारत के विषय को सूक्ष्मतया विविध छंदों में कहा और वैताल बंदीजन ने बड़ी हो सबल कविता की । ऐसी उद्दंड कविता हिंदी में कोई भी नहीं कर सका है। गोरेलाल उपनाम लाल कवि इस समय का परमोत्तम कथा-प्रासंगिक कवि है । इसने छत्रप्रकाश नामक ललित ग्रंथ में महाराज छत्रसाल का जीवन-चरित्र संवत् १७६१ पर्यंत लिखा है । जान पड़ता है कि यह कवि इस समय के पीछे जीवित नहीं रहा । इस ग्रंथ में दोहा-चौपाई छोड़कर कोई भी छंद नहीं है, परंतु इन्हीं से यह अनमोल और मनोहर बना है। लाल के बराबर उत्तम कविता में उद्दंढता लाने में कोई भी कवि समर्थ नहीं हुआ है । भूषण, हरिकेश, शेखर और लाल, ये चारों बड़े उद्दंड लेखक हैं, परंतु लाल का प्राबल्य इन सबसे निकलता हुआ है, यद्यपि कुल मिलाकर ये भूषण के समान सत्कवि नहीं हैं। बैताल भी एक बड़ा ही उद्दंड कवि है, परंतु उसके कथन कुछ प्रामीणता लिए हुए हैं और लाल साधु भाषा में अद्वितीय उद्दंडता लाए हैं। इस अमूल्य ग्रंथ में कविता-संबंधी प्रायः सभी सद् गुण वर्तमान हैं । युद्धों का ऐसा उत्तम वर्णन बहुत स्थानों पर न मिलेगा । इस कवि ने उत्तमता में अपनी रचना गोस्वामीजी से मिला-सी दी है, यद्यपि इन दोनों कवियों के डंगों में बड़ा अंतर है। लाल एक बड़ा ही अनमोल कवि है। गुरु गोविंदसिंह सिक्खों के दसवें बादशाह थे । इन्होंने सिक्खों में जातीप्रदा का बीज बोया। इनकी कविता भी साधारणतया अच्छी थी ।