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मिश्रबंधु-विनोद


मैं काव्य किया है। इसकी रचना परम गंभीर तथा मनोहर होती थीं। महाराजा जसवंतसिंह ओधपुराधिपति हिंदी के महान् कवीश्चरो और आचार्यों मे गिने जाते हैं। इनका "भाषाभूषख" अलंकार ग्रंथ बड़ा ही उत्कृष्ट है। इस काल से अनुप्रासादि का विशेष समावेश भाषा में होने लगा।

           बिहारी काल
बिहारी-काल ( १७०७-१७२० ) के प्रसिद्ध कवि राजा शंभुनाथ सोलंकी, नरहरिदास, प्राणकाय, मरमी, मतिराम, भीष्म, दामोदर

दास, मंछन, सबकासिंह, सरसदास और अनन्य शीलमणि हैं।.. : बिहारी लाल की कविता जैसी अनूठी और हृदयनाहिसी हुई है। उसकी जितनी प्रशंसा की जाय, थोड़ी है। इन्होंने वास्तव में कुनै में समुद्र भर दिया है । इनका एक-एक दोहा अपूर्व आनंद देता है। उच्च वयान तथा तलाजमों में इन्होंने फारसी एवं उर्दू के नामो कवियों को मात किया है। इनको कविता हर प्रकार के कवियों को मुचिकर हुई है। इस ऋवि की दृष्टि हिंदी-भाषा के प्रायः सभी कवियों से पैनी थी और अनुभव भी खूब बढ़ा-चढ़ा था। इसका शायद ही कोई दोहा निकले, जिसमें किसी प्रकार का विशेष चमत्कार न हो। कादयाँपने में यह कवि शायद सबसे बढ़ा हुआ है । इसकी भाषा . बैंसी बढ़िया चाहे न हो, पर भाव अपूर्व हैं । केवल ७०० दोहों के महारें इसका पद हिंदी-संसार में इतना ऊँचा है कि कोई-कोई शयिताप्रेमी लोग इसे सर्वोत्तम ऋवि समझते हैं, और हमने भी अपने नवरत्न में इसे चौथा स्थान दिया है । इसकी देखादेखी बहुत कवियों ने सतसैमा बनाई, पर उन दो भेट कहाँ ? बिहारी की कविता वास्तव में हिंदी का श्रृंगार है । रामा शंभुनाथ ने मान-शिस्त्र भारतासालो बनाया ऐसा उत्तम सिखाया में किसी कैदिस महीं है। इनकी अन्य कविता मी सानुप्रास एवं भाव-पर्ट है।