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मिश्रबंधु-विनोद

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मिश्रबंधु-विनोद तुलसी-काज ... तुलसी-काल तीन प्रधान उपविभागों में बँट सकता है, प्रथम १६४५ पर्यंत, द्वितीय १६७० तक और तृतीय शेषकालिक । प्रथम उपविभाग में अग्रास, करनेस, गदाधर भट्ट, बल्लभद्र मिश्र, होलराय, रहीम, लालचंद, रसखान, अनंतदास आदि भारी कवि थे। अग्रदास ने रामभक्ति को प्रधान रक्खा, करनेस ने पहलेपहन मॅडौवा बनाने की चाल चलाई और वलभद्र मिश्र ने बड़ी गंभीर भाषा में नखशिख का पहला स्वतंत्र भाव-पूर्ण ग्रंथ निर्माण किया। गदाधर भट्ट एक प्राचीन प्रकार का भक्त था। इसने कृष्ण-यश उत्कृष्ट छंदों में गाया । रहीम के चटकीले दोहों में नीति की प्रथानता है । लालचंद (१६४३) ने हिंदी में पहला इतिहास-भ्रंथ बनाया । रसखानजी मुसलमान होने पर भी पूरे वैष्णव थे। उन्होंने प्रेम का अच्छा चित्र खींचा । इनके छंदों से भक्ति टपकी पड़ती है। कविता भी इनकी बड़ी प्रशंसनीय है। भक्ति-भावों के अतिरिक कतिपय कवियों ने विविध विषयों की ओर भी ध्यान दिया । महाराज टोडरमल के समय तक मुसलमानी दफ्तरों में हिंदी का ही प्रचार था। इससे यह हानि भी कि हिंदू लोग कारली बहुत नहीं पढ़ते थे, सो उनको सरकार में बड़े-बड़े ओहदे कम मिलते थे। यही सोचकर इन महाराज ने दुफ्तरों से हिंदी उठा दी। इससे हिंदीप्रचार में कुछ क्षत्ति हई, पर हिंदों को लाभ हया. तथा उनमें फारसी-प्रचार की वृद्धि से हिंदी में नए-नए भाव श्राने लगे और विविध विषयों के वर्णन की परिपाटी ने बल पाया । ..... केशवदास यादि .. " द्वितीय उपविभाग में केशवदासजो प्रधान कवि हैं। इन्होंने १६४८ से ६८ तक कविता की है । जैसे तुलसीदास ने दोहा चौपा. इयों में कथा लिखने की परिपाटी रद की, वैसे ही इन्होंने सवैया,