पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१३८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०२
मिश्रबंधु-विनोद

का कविता-काल १६०२ है। इनका सुदामा-चरित्र प्रबल और स्वाभाविक काव्य का अच्छा उदाहरण है। श्रीस्वामी हरिदासजी ने १६०० से काव्य-रचना प्रारंभ की। ये महाशय पूरे ऋषि और दहियों की संप्रदाय के प्रवर्तक थे। गाने में ये स्वयं तानसेन के विद्या-गुरु थे।

अकबरी दरबार

महाराजा बीरबल अकबरी दरबार में मुसाहब और सरदार थे। इन्होंने भी ग्रह के उपनाम से कविता की, जिसमें अनुप्रास तथा उपमाओं की अच्छी बहार है। इनके अतिरिक्त स्वयं अकबर कविता करते थे तथा टोडरमल, तानसेन, मानसिंह, फ़ैज़ी, अबुलफज़ल, नरहरि, अजबेस और महाकवि गंग एवं रहीम आदि कवि उसके दरबार में उपस्थित थे। इनमें गंग और रहीम की गामा टकसाली कवियों में है! गंग के बहुत छंद नहीं मिलते, पर सुप्रसिद्ध कवि भिखारीदास ने इनकी तुलना श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी से की है। बस, इसी से इनके महत्त्व का परिचय मिल सकता है। रहीम अथवा रहमन (अब्दुर्रहीम खाननाना) के नीति, शृंगार एवं स्फुट विषयसंबंधी यथार्थ तथा चटकीले भावों से पूर्ण दोहे बरथै तथा अन्य छंद हिंदी-संसार में प्रसिद्ध हैं और बिहारीलाल आदि दो-चार लोगों को छोड़ और किसी के दोहे इनकी समता नहीं कर सकते। इसी समय में गोलकुंडा नरेश भी हिंदी-कविता करता था। यह हिंदी के गौरव का विषय है कि इस समय के दो बादशाह इसमें स्वयं कविता करते एवं कवियों का मान करते थे। अकबर बादशाह के यहाँ १६२० के लगभग गंगा भाट खड़ी बोली का प्रथम गद्य-लेखक हुआ, जिसने "चंद छंद वरनन की महिमा" नाम्नी पुस्तक रची।

अन्य कवि

सौर-काल के अन्य कवियों में महात्मा दादूदयाल, श्रीभट्ट, बिहारिनिदास, नागरीदास, भगवानहित और रसिक प्रधान थे।