पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१३१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

संक्षित अनिहाय-प्रकरध अंध बनाया, तथा १३५० के अगभा वहीं श्रीज्ञानेश्वर और सरकाबाई ने मी हिंदी कविता को अपनाया ! इसी समय मामदेव ने भी कविता की । संवत १३५४ में नरपति नान्ह नै बासनदेव-शासा बनाया और १३२५ के राम सिंह ने विजयपाल रासा रखासंवत १३२७ मंशारंगधर कदि ने हम्नीर-ऋभ्य, हम्मीर-राला और शारंगधरपद्धति बनाई। इन्न चार कवियों की हिंदी में अंतर है ऋम से हिंदी-भाषा विकसित होते-होने नए स्म में आने लगी थी और चंद्र की माले बाह पृथक देख चढती है। अतः इस जियो के साथ प्राचीन हिंदी का द्वितीय समय शाम होता है । इसी समय अभीर स्वसरों से वर्तमान उर्दू कविता की जद पढ़ती है। इन्होंने काकालिक प्रचलित हिंदी में करिता की है और वही बोद्धी में भी। खही बोली के प्रथम कवि मुकतो ही को आ सकते हैं । मुसा दाऊद ने १३८५ में नरक चंदा' की एक प्रेम कहानी लिली। . गोरखनाथ । महात्मा गोरखनाथ का रचनाकाल 120 से प्रारंभ होता है। महात्माओं में यही महाराज पहले थे, जिन्होंने संस्थान के साथ हिदीरचना भी की। ब्राह्मलों में निश्चयात्मक रीति से यही प्रथम कवि थे।इनके प्रथम शारंगबर अनुमान से बाहर थे, परंतु इसका निश्चय कुछ नहीं है। जो हो, अव हिंदी की महिमा कुछ बढ़ी और संस्कत के भारी पंडितों में भी इसे अपनाया । गोरखनाथजी एक पंचप्रवर्तक थे। इस कारण से भी अन्य पंथ चलानेवालों की भांति इन्होंने सी देश-भाया ही में शिक्षा का देना उचित समझर । गौतम अध, नानक, दयानंद श्रादि महात्माओं ने भी ऐसा ही किया। अपने उपदेशी को लोकप्रिय बनाने के लिये महात्मा खोग ऐसा करते हैं, जिससे सर्वसाधारण उनके उपदेशों को समझ सके। इन कारणों से मोरखनाथजी द्वारा हिंदी का बड़ा उपकार हुआ, क्योकि इस