पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/११९

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संवत् १९६० दिनोंद का काम किया गया एवं सरस्वती में कई सालोचनात्मक लेख प्रकाशित किए गए। इनके अतिरिक्त 'गीता बन मर्म' नामक ऋङमा एक वैज्ञानिक दंन का खेल सरस्वती में छपवाया गया और विवा-विवाद पर एक देख शिकता। हिंदी-नवरत्न संवत् १६६८ में हिंदी-नावरब-नामक ग्रंथ प्रकाशित हुआ और विनोद की रचना हुई। नवरत में प्रायः ४०० पृष्ठों में हिंदी के नब सबसे अच्छे कदियों पर समालोचनाएँ लिखी गई। इसी साल धुंदी वारी नामक ब्रमभाका-पञ्जा-ग्रंथ छा प्रारंभ हुअा, जिसके अभी तक ढाई वरंग बने हैं। उदाहरण -- पापन्न मरन है करत सब ही को जब , स्यान तब इस कविता को प्रतिपालगो: बद्धको बिचार उब करत न पोयन में, सिविल कबिन तत्र कैसे वह घाबैंगी। सोचिकै विसंभर को भाव यह आसप्रद, कौन कविता सो मतिमंद कधि हालैगी। अनुभव छोन, रीति पथ हु मैं दीन, तैसे , . सति-विहीन कवि प्रथ रचि हालैगो । दुज कनौजिया वंस रात माहिर अस धारी: मयो साँबले कृष्णा प्राट तेहि मैं सुविचारी। रह्यो सदा भगवंतनगर मैं मो सुखराली निरचनता में दान दवा को सुजस प्रकासी । तेहि पाय बालगोविंद सुत पुल्य महीतल थापियो जेहि उदाहरन श्राचरन को निज पावन जीवन किया। .