है अथवा अनुचित । इन विवादों में हमने भी उत्तर दिया, और
दरभंगा के प्रसिद्ध लेखक पंडित भुवनेश्वर मिश्र ने हमारे सिद्धांतों
की पुष्टि में एक उत्कृष्ट लेख लिखा।
विक्टोरिया-अष्टादशी
विक्टोरिया-अष्टादशी में महारानी विक्टोरिया की मृत्यु पर १८ छंदों
द्वारा शोक मनाया गया था।
उदाहरण---
प्राय दुसह दुकाल इत अब ईस कोप समान;
धारि भीषम रूप धायो भरी रिसि अति मान ।
छाॕडि साहस धीर जब सब लोग हाहा खाय;
छुधा-पीड़ित लगे ढोलन चहूँ दिसि बिललाय ।
एक अंजलि धान हित जब मातु-पितु अरु बाल ;
रहे भक्तगरत खान तिन कहें भरे भूख कराल ।
रहे सब नर चहत सुख सो जान कारागार ;
मिलै जासों साँक्त लौं भरि पेट तत्र अहार ।
एक कर में धारि बालक दुतिय कर फैलाय;
अन्न कन जब हुती आचत तरुनिगन बिलखाय।
गई जब नभ कुसुम-सी घन अाल झूठी होय;
वारि धारन ठौर रचि कर परत लखि भै भोय।
उड़त पावस माहि जब नभ धूरि धार महान;
लाज बस सह साँसु ढाकत मनहु मुख तजि मान ।
रैनि में जब कुटिल अच्छन खोजि-खोलि अकास;
नखतान मिसि सरुख देखत रह्यो हिंद निरास ।
दया भरि तेहि समै जेहि धन धान्य अमित्त पठाय ;
लिए कोटिन छुधा-पीड़ित मस्त लोग जियाय ।