का निरन्तर विचार किया करते हैं और दुख वा क्लेश के विषय में बात चीत किया करते हैं, कभी शिर के दर्द को शिकायत कभी बुखार की किया करते हैं नाड़ी कुछ कम चलती है, हाथ पैरों में गर्मी है। यहां तक कि धीरे धीरे वे एक दिन महा रोगों के शिकार बन जाते हैं। उस समय उन्हें सहानुभूति की ढूंढ होती है और पूछा करते हैं, भाई क्या करें कुछ ईश्वर हमसे रुष्ट है, हम बड़े दुख में पड़े हैं। मित्रों से सहायता चाहने की इच्छा रखते हैं। उनके ऊपर दया और सहानुभूति दिखलाना हमारा कर्तव्य है उनके मन की बुरी स्थिति उनको दया का पात्र बनाती है।
परन्तु मनुष्यों को कौन सचेत करे और उनको विचारवान बनावे। जो वक्ता या लेखक होते हैं उन्हें इस बात पर विचार करना चाहिए कि मनुष्य अपने पुराने रीति को क्यों तोड़ सकता है। उनके हृदयों को उदार और विशाल बना देवें कि वे उस सत्य को ग्रहण करें जो कि अपने अनुभव और अपने जीवन ने दिखाया है कि विचार में बड़ी शक्ति है। यह प्रत्येक बालक, युवा और वृद्ध मनुष्य में पाई जाती है और जो चाहे अभीष्ट के साधन में लगाई जा सकती है। प्रत्येक मनुष्य की विचार शक्ति उसी की है और उसका फल भी वही मनुष्य भोगता है उसको दूसरा व्यक्ति न रोक सकता है और न बिगाड़ सकता है।
मेरे प्रिय पाठको। चाहे तुम कोई हो और किसी स्थिति में भी हो, किन्तु पारस तुम्हारे पास है। तुम आज ही से अपने जीवन, मन, शरीर और परस्थिति को सुधारना प्रारम्भ
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