पृष्ठ:मानसिक शक्ति.djvu/२५

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इच्छा अथवा अभिलाषा।
 


निठल्ले और बेकार न रहकर काम करने के लिए सदैव तत्पर रहोगे और हाथ पर हाथ रक्खे हुए बैठे रहकर अभिलाषा पूर्ण होने को आशा न करोगे। मैं विश्वास के साथ कहता हूँ कि तुम्हारा परिश्रम विफल नहीं होगा। वह विफल हो नहीं सकता अवश्यमेव सफलता होगी।

वस्तु के भले बुरे मालूम करने का सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि किसी वस्तु को पा करके उसी से ठीक, ठीक अनुभव प्राप्त करो कि उसकी प्राप्ति लाभदायक है या नहीं। जिस वस्तु को तुम हमेशा इच्छा किया करते थे क्या वह तुम को नहीं प्राप्त हुई? और इच्छा दृढ़ता पूर्वक हार्दिक थी तो तुम सदैव यह विचारोगे क्या अच्छा होता यदि मुझको वह वस्तु मिल जाती जिसे कि मैं इच्छा करता था तो मेरा जीवन सफलीभूत और आनन्दमय बन जाता। दृष्टान्त के तौर पर एक आदमी को लो जो बहुत धन की इच्छा किया करता है, जो रुपये की गरज़ से रुपये की ओर ध्यान लगाए रहता है वह इस संसार के सब सुवर्ण की इच्छा इस अभिप्राय से करता है कि मैं अपने भाइयों से धनी हो जाऊँ। जब लखपती हो गया और दुःख तनिक भी कम नहीं हुआ तो अन्त में फिर वह सच्चे धन की ओर लगेगा जो कि शाश्वत और सुखकर है और जिसकी प्राप्ति से आत्मा को सब प्रकार का सुख और शांति मिलेगी।

 

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