यह पृष्ठ प्रमाणित है।
कुसुम

करने में तो वह इतनी पटु है कि मुझे आश्चर्य होता है। गृह-प्रबन्ध में इतनी कुशल कि मेरे घर का प्रायः सारा प्रबन्ध उसीके हाथ में था ; किन्तु पति की दृष्टि मे वह पाँव की धूल के बराबर भी नहीं । बार-बार पूछता हूँ, तूने उसे कुछ कह दिया है, या क्या बात है ? आखिर वह क्यों तुझसे उदासीन है ? इसके जवाब मे रोकर यही कहती है---‘मुझसे तो उन्होंने कभी कोई बातचीत ही नहीं की। 'मेरा विचार है कि पहले ही दिन दोनों में कुछ मनमुटाव हो गया। वह कुसुम के पास आया होगा और उससे कुछ पूछा होगा । उसने मारे शर्म के जवाब न दिया होगा। सम्भव है, उसने दो-चार बातें और भी की हों। कुसुम ने सिर न उठाया होगा । आप जानते ही हैं, वह कितनी शर्मीली है। बस पतिदेव रूठ गये होंगे । मैं तो कल्पना ही नहीं कर सकता कि कुसुम-जैसी बालिका से कोई पुरुष उदासीन रह सकता है ; लेकिन दुर्भाग्य को कोई क्या करे । दुखिया ने पति के नाम कई पत्र लिखे ,पर उस निर्दयी ने एक का भी जवाब न दिया । सारी चिट्ठियाँ लौटा दीं । मेरी समझ में नहीं आता कि उस पाषाण-हृदय को कैसे पिघलाऊँ। मैं अब खुद तो उसे कुछ लिख नहीं सकता। आप ही कुसुम की प्राण-रक्षा करें, नहीं शीघ्र ही उसके जीवन का अन्त हो जायगा, और उसके साथ हम दोनों प्राणी भी सिधार जायेंगे । उसकी व्यथा अब नहीं देखी जाती ।

नवीनजी की आँखें सजल हो गई । मुझे भी अत्यन्त क्षोभ हुआ । उन्हें तसल्ली देता हुआ बोला--आप इतने दिनों इस चिन्ता में पड़े रहे, मुझसे पहले ही क्यों न कहा-मैं आज ही मुरादाबाद जाऊँगा और उस लौडे की इस बुरी तरह खबर लूंँगा कि वह भी याद करेगा । बचा को जबरदस्ती घसीटकर लाऊँगा और कुसुम के पैरों पर गिरा दूंँगा।

नवीनजी मेरे आत्मविश्वास पर मुस्कराकर बोले—-आप उनसे क्या कहेगे ?

‘यह न पूछिए । वशीकरण के जितने मन्त्र हैं, उन सभी की परीक्षा करूगा ।'

‘तो आप कदापि सफल न होंगे । वह इतना शीलवान, इतना विनम्र, इतना प्रसन्न-मुख है, इतना मधुर-भापी कि आप वहाँ से उसके भक्त होकर लौटेंगे। वह नित्य आपके सामने हाथ बाँधे खड़ा रहेगा । आपकी सारी कठोरता शान्त हो जायगी । आपके लिए तो एक ही साधन है। आपके कलम में जादू है ! आपने कितने ही युवको को सन्मार्ग पर लगाया है। हृदय में सोई हुई मानवता को जगाना आपका हिस्सा है। मैं चाहता हूँ, आप कुसुम की ओर से एक ऐसा करुणा-जनक, ऐसा दिल