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मानसरोवर


यह तो आभूषण हैं । उसने एक-एक आभूषण को निकालकर देखा । यह गहने कहाँ से आये ! मुझसे कभी इनकी चर्चा नहीं की । सहसा उसके मन में भाव उठा-कहीं यह ठाकुर साहब के गहने तो नहीं हैं। चीज़ वही थीं, जिनका वह बखान करते रहते थे। उसे अब कोई सन्देह न रहा , लेकिन इतना घोर पतन ! लज्जा और खेद से उसका सिर झुक गया।

उसने तुरन्त सन्दूक बन्द कर दिया और चारपाई पर लेटकर सोचने लगी। इनकी इतनी हिम्मत पड़ी कसे ? यह दुर्भावना इनके मन से आई ही क्यों ? मैंने तो कभी आभूषणों के लिए आग्रह नहीं किया। अगर आग्रह भी करती, तो क्या उसका आशय यह होता कि वह चोरी करके लाये ? चोरी-आभूषणों के लिए । इनका मन क्यों इतना दुर्बल हो गया ?

उसके जी मे आया, इन गहनो को उठा ले और ठकुराइन के चरणों पर डाल दे, उनसे कहे-यह मत पूछिए, यह गहने मेरे पास कैसे आये। आपकी चीज आपके पास आ गई। इसी से सन्तोष कर लीजिए ।

लेकिन परिणाम कितना भयंकर होगा ।

( ६ )

उस दिन से चम्पा कुछ उदास रहने लगी। प्रकाश से उसे वह प्रेम न रहा, न वह सम्मान-साव । बात-बात पर तकरार होती। अभाव में जो पररपर सदभाव था, वह गायब हो गया था। तब एक दूसरे से दिल की बात कहता था, भविष्य के मसूबे बांधे जाते थे, आपस मे सहानुभूति थी । अब दोनो ही दिलगीर रहते । कई-कई दिनों तक आपस मे एक बात भी न होती।

कई महीने गुज़र गये। शहर के एक बैंक मे असिस्टेंट मैनेजर की जगह खाली हुई। प्रकाश ने अर्थशास्त्र पढा था, लेकिन शर्त यह थी कि नक़द दस हजार की जमानत दाखिल की जाय । इतनी बड़ी रकम कहाँ से आये। प्रकाश तड़प-तड़पकर रह जाता था।

एक दिन ठाकुर साहब से इस विषय मे बात चल पड़ी।

ठाकुर साहव ने कहा-तुम क्यों नहीं दरख्वास्त भेजते ?

प्रकाश ने सिर झुकाकर कहा-दस हजार को नकद जमानत मांगते हैं। मेरे पास रुपये कहाँ रखे है!