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चमत्कार


निशान दिखाई दिये। जहाँ प्रकाश का पांव पड़ा था, वहाँ का चूना लग जाने के कारण छत पर पांच का निशान पड़ गया था। प्रकाश की छत पर जाकर मुंडेर को दूसरी तरफ देखा तो वैसे ही निशान वहाँ भी दिखाई दिये । ठाकुर साहब सिर झुकाये खड़े थे, संकोच के मारे कुछ कह न सकते थे। प्रकाश ने उनके मन की बात खोल दो-~-- इससे तो स्पष्ट होता है कि चोर मेरे ही घर मे से आया । अव तो कोई सदेह हो नही रहा।

ठाकुर साहब ने कहा-हाँ, मैं भी यही समझता हूँ, लेकिन इतना पता लग जाने से ही क्या हुआ। माल तो जाना था, सो गया। अब चलो आराम से बैठे। आज रुपये की कोई फिक्र करनी होगी।

प्रकाश-मैं आज ही यह घर छोड़ दूंगा।

ठाकुर -क्यों, इसमे तुम्हारा कोई दोष नहीं।

प्रकाश-आप कहे , लेकिन मैं तो समझता हूँ, मेरे सिर बड़ा भारी अपराध लग गया । मेरा दरवाजा नौ-दस बजे तक खुला ही रहता है । चोर ने रास्ता देख लिया । संभव है, दो-चार दिन में फिर आ घुसे। घर में अकेली एक औरत सारे घर का निगरानी नहीं कर सकती। उधर वह तो रसोई मे बैठी है, उधर कोई आदमी चुपके से ऊपर चढ़ जाय तो जरा भी आहट नहीं मिल सकती। मैं धूम-घामकर कभी नौ बजे आया, कभी दस बजे । और शादी के दिनों में तो देर होती ही रहेगी। उधर का रास्ता बन्द ही हो जाना चाहिए । मैं तो समझता हूँ, इस चोरी की सारी जिम्मे- दारी मेरे सिर है।

ठकुराइन डरी-तुम चले जाओगे भैया, तब तो धर और फाड़े खायगा ।

प्रकाश-कुछ भी हो माताजी, मुझे बहुत जल्द घर छोड़ना ही पड़ेगा। मेरी राफलत से चोरी हुई, उसका मुझे प्रायश्चित्त करना ही पड़ेगा।

प्रकाश चला गया, तो ठाकुर ने स्त्री से कहा-बड़ा लायक आदमी है।

ठकुराइन—क्या बात है। चोर उपर से आया, यही बात उसे लग गई।

'कहीं यह चोर को पकड़ पाये, तो कच्चा खा जाय ।'

'मार ही डाले।'

'देख लेना, कभी-न-कभी माल बरामद करेगा।

'अब इस घर मे कदापि न रहेगा, कितना ही समझाओ।'