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चमत्कार


फिर भी जीने से उतरने लगा, तो उसकी छाती धड़क रही थी।

( ४ )

धूप निकल आई थी। प्रकाश अभी सो रहा था कि चपा ने उसे जगाकर कहा- चढ़ा गज़ब हो गया। रात को ठाकुर साहब के घर में चोरी हो गई। चोर गहने की सदूकची उठा ले गया !

प्रकाश ने पडे़-पडे़ पूछा---किसीने पकड़ा नहीं चोर को ?

'किसी को खबर भी हो ! वही सदूकची ले गया, जिसमे ब्याह के गहने रखे थे। न-जाने कैसे कुञ्जी उड़ा ली और न जाने कैसे उसे मालूम हुआ कि इस संदूक मे सदृकची रखी है।'

'नौकरों की कार्रवाई होगी। बाहरी चोर का यह काम नहीं है।'

'नौकर तो उनके तीनो पुराने है।'

'नीयत बदलते क्या देर लगती है। आज मौका देखा, उडा़ ले गये।'

'तुम जाकर जरा उन लोगो को तसल्ली तो दो। ठकुराइन बेचारी रो रही थी। तुम्हारा नाम ले-लेकर कहती थीं कि बेचारा महीनों इन गहने के लिए दौड़ा, एक- एक चीज अपने सामने जंँचवाई और चोर दाढीजारो ने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया।'

प्रकाश चटपट उठ बैठा और घबड़ाया हुआ-सा जाकर ठकुराइन से बोला-यह तो बड़ा अनर्थ हो गया माताजी, मुझसे तो अभी-अभी चम्पा ने कहा । ठाकुर साहब सिर पर हाथ रखे बैठे हुए थे। बोले---कहीं सेव नहीं, कोई ताला नहीं टूटा, किसी दरवाजे की चूल नहीं उतरी । समझ में नहीं आता, चोर आया किधर से।

ठकुराइन ने रोकर कहा-में तो लुट गई भैया, व्याह सिर पर खटा है, कैसे क्या होगा भगवान् ! तुमने दौड़-धूप की थी, तब कहीं जाके चोजें आई थीं। न- जाने किस मनहूस सायत मे लग्न आई थी।।

प्रकाश ने ठाकुर साहब के कान में कहा- मुझे तो किसी नौकर की शरारत मालूम होती है।

ठकुराइन ने विरोव किया-अरे नहीं भैया, नौकरो में ऐसा कोई नहीं । दस-दस हज़ार रुपये यों ही ऊपर रखे रहते थे, कभी एक पाई भी नहीं गई।

ठाकुर साहब ने नाक सिकोड़कर कहा- तुम क्या जानो, आदमी का मन कितना‌