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वेश्या


नहीं आता। तुम्हारे लिए मैंने इन गुण्डों की कितनी मिन्नतें की हैं, उनके हाथो कितना अपमान सहा है, वह तुमसे न कहना ही अच्छा है। जिनका मुंह देखना भी मैं अपनी शान के खिलाफ समझती हूंँ, उनके पैरों पड़ी हूँ; लेकिन ये कुत्ते हड्डियो के टुकड़े पाकर और भो शेर हो जाते है। मैं अब उनसे तग आ गई हूँ और तुमसे हाथ जोड़कर कहती हूँ कि यहां से किसी ऐसी जगह चले चलो, जहाँ हमे कोई न जानता हो। वहाँ शान्ति के साथ पड़े रहे। मैं तुम्हारे साथ सब कुछ झेलने को तैयार हूँ। आज इसका निश्चय कराये विना मैं तुम्हे न जाने दूंगी। मैं जानती हूँ, तुम्हें मुझ पर अब भी विश्वास नहीं है। तुम्हें सन्देह है कि तुम्हारे साथ कपट करूंगी।

दयाकृष्ण ने टोंका-नहीं माधुरी, तुम मेरे साथ अन्याय कर रही हो । मेरे मन में कभी ऐसा सन्देह नहीं आया। पहले ही दिन मुझे न जाने क्यो, कुछ ऐसा प्रतीत हुआ कि तुम अपनी ओर बहनों से पृथक हो। मैंने तुममे वह शील और संकोच देखा, जो मैंने कुलवधुओं में देखा है।

माधुरी ने उसकी आँखों में आँखें गड़ाकर कहा- तुम झूठ बोलने की कला में इतने निपुण नहीं हो कृष्ण कि वेश्या को भुलावा दे सको। मैं न शीलवती हूँ, न संकोचवती हूँ और न अपनी दूसरी बहनो से अभिन्न हूँ। में वेश्या है, उतनी ही कलुषित, उतनी हो विलासान्ध, उतनी हो मायाविनी, जितनी मेरी दूसरी बहने , बल्कि उनसे कुछ ज्यादा । न तुम अन्य पुरुषों की तरह मेरे पास विनोद और वासना-तृप्ति के लिए आये थे। नहीं, महीनों आते रहने पर भी तुम यों अलिप्त न रहते। तुमने कभी डींग नहीं मारी, मुझे धन का प्रलोभन नहीं दिया। मैंने भो कभी तुमसे वन की आशा नहीं की। तुमने अपनी वास्तविक स्थिति मुझसे कह दी। फिर भी मैंने तुम्हें एक नहीं, अनेक ऐसे अवसर दिये कि कोई दूसरा आदमी उन्हें न छोड़ता , लेकिन तुम्हें मैं अपने पंजे में न ला सकी। तुम चाहे और जिस इरादे से आये हो, भोग को इच्छा से नहीं आये। अगर मैं तुम्हे इतना नीच, इतना हृदयहीन, इतना विलासान्ध समझती, तो इस तरह तुम्हारे नाज़ न उठाती , फिर मैं भी तुम्हारे साथ मित्र-भाव रखने लगी। समझ लिया, मेरी परीक्षा हो रही है। जब तक इस परीक्षा में सफल न हो जाऊँ, तुम्हे नहीं पा सकती। तुम जितने सज्जन हो, उत्तने ही कठोर हो।