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मानसरोवर


लेकर भागे। उसी वक्त बाईं ओर से पुलिस की दौड़ आ धमकी और पुलिस कमिश्नर ने विद्रोहियों को पाँच मिनट के अन्दर यहाँ से भाग जाने का हुक्म दे दिया।

समूह ने एक स्वर से पुकारा-गोपीनाथ की जय।

एक घण्टा पहले अगर ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हुई होती, तो सेठजी ने बड़ी निश्चिन्तता से उपद्रवकारियों को पुलिस की गोलियों का निशाना बनने दिया होता, लेकिन गोपीनाथ के उस देवोपम सौजन्य और आत्म-समर्पण ने, जैसे उनके मन.स्थित विकारों का शमन कर दिया था और अब साधारण औषधि भी उन पर रामबाण कासा चमत्कार दिखाती थी।

उन्होंने प्रमीला से कहा-मैं जाकर सबके सामने अपना अपराध स्वीकार किये लेता हूँ! नहीं, मेरे पीछे न-जाने कितने घर मिट जायेंगे।

प्रमीला ने काँपते हुए स्वर में कहा-यह खिड़की से आदमियों को क्यों नहीं समझा देत? वह जितनी मंजूरी चढ़ाने को कहते हो, बढ़ा दो।

'इस समय तो उन्हें मेरे रक्त की प्यास है। मजूरी बढ़ाने का उन पर कोई असर न होगा।'

सजल नेत्रों से देखकर प्रमीला बोली-तब तो तुम्हारे ऊपर हत्या का अभियोग चल जायगा।

सेठजी ने धीरता से कहा-भगवान् की यही इच्छा है, तो हम क्या कर सकते हैं। एक आदमी का जीवन इतना मूल्यवान नहीं है, कि उसके लिए असख्य जाने ली जाएँ।

प्रमीला को मालूम हुआ, साक्षात् भगवान् सामने खड़े हैं। वह पति के गले से लिपटकर बोली-तो मुझे क्या कहे जाते हो?

सेठजी ने उसे गले लगाते हुए कहा-भगवान् तुम्हारी रक्षा करेंगे। उनके मुख से और कोई शब्द न निकला। प्रमीला की हिचकियाँ बंधी हुई थी। उसे रोता छोड़कर सेठजी नीचे उतरे।

वह सारी सम्पत्ति, जिसके लिए उन्होंने जो कुछ करना चाहिए, वह भी किया; जो कुछ न करना चाहिए, वह भी किया; जिसके लिए खुशामद की, छल किया, अन्याय किये, जिसे वह अपने जीवन-तप का वरदान समझते थे, आज कदाचित सदा के लिए उनके हाथ से निकली जाती थी; पर उन्हें ज़रा भी मोह न था, ज़रा भी