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डामुल का कैदी

सेठजी ने मोटर से उतरते हुए कास्टेवलों को बुलाकर कहा-इन आदमियो को मारकर बाहर निकाल दो, इसी दम ।

मजूरों पर डण्डे पड़ने लगे। दस-पांच तो गिर पड़े। बाकी अपनी-अपनी जान लेकर भागे । वह युवक दो आदमियों के साथ अभी तक डटा खड़ा था ।

प्रभुता असहिष्णु होती है। सेठजी खुद आ जायें, फिर भी ये लोग सामने खड़े रहे, यह तो खुला हुआ विद्रोह है। यह बेअदबी कौन सह सकता है । जरा इस लौंडे को देखो। देह पर साबित कपड़े नहीं है , मगर जमा खड़ा है, मानो मैं कुछ हूँ ही नहीं । समझता होगा, यह मेरा कर ही क्या सकते हैं।

सेठजी ने रिवाल्वर निकाल लिया और इस समूह के निकट आकर उसे निकल जाने का हुक्म दिया , पर वह समूह अचल खड़ा था। सेठजी उन्मत्त हो गये। यह हेकड़ी ! तुरन्त हेड कास्टेवल को बुलाकर हुक्म दिया-इन आदमियों को गिरफ्तार कर लो।

कास्टेबलों ने इन तीनो आदमियों को रस्सियों से जकड़ दिया और उन्हे फाटक की ओर ले चले। इनका गिरफ्तार होना था कि एक हजार आदमियों का दल रेला मारकर मिल से निकल आया और कैदियों की तरफ लपका। कास्टेवलों ने देखा, बन्दूक चलाने पर भी जान न बचेगी, तो मुलजिमों को छोड़ दिया और भाग खड़े हुए। सेठजी को ऐसा क्रोध आ रहा था कि इन सारे आदमियो को तोप पर उड़वा दें। क्रोध में आत्म रक्षा की भी उन्हें परवाह न थी। कैदियों को सिपाहियो से छुड़ा- कर वह जन-समूह सेठजी की ओर आ रहा था । सेठजी ने समझा-सब-के-सब मेरी जान लेने आ रहे है। अच्छा ! वह लौण्डा गोपी सभी के आगे है। यही यहाँ भी इनका नेता बना हुआ है। मेरे सामने कैसा भीगी बिल्ली बना हुआ था , पर यहाँ सबसे आगे-आगे आ रहा है !

सेठजी अब भी समझौता कर सकते थे, पर यों दबकर विद्रोहियों से दान मांगना उन्हे असह्य था।

इतने में क्या देखते है कि वह बढता हुआ समूह बीच ही में रुक गया। युवक ने उन आदमियों से कुछ सलाह की और, तब अकेला सेठजी की तरफ चला । सेठजी ने मन में कहा- शायद मुझसे प्राण-दान की शर्ते तय करने आ रहा है। सभी ने आपस में यही सलाह की है। जरा देखो, कितने निदशक भाव से चला आता है।