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मानसरोवर

यह लम्बा, दुबला, साँवला युवक मजूरो का प्रतिनिधि था। उसकी आकृति में कुछ ऐसी दृढता, कुछ ऐसी निष्ठा, कुछ ऐसी गम्भीरता थी कि सभी मजूरों ने उसे नेता मान लिया था।

युवक के स्वर में निराशा थी, क्रोध था, आहत सम्मान का रुदन था।

'कुछ नहीं हुआ। सेठजी कुछ नहीं सुनते।'

चारों ओर से आवाज़ आई-तो हम भी उनकी खुशामद नहीं करते ।

युवक ने फिर कहा-वह मजूरी घटाने पर तुले हुए हैं, चाहे कोई काम करे या न करे। इस मिल से इस साल दस लाख का फायदा हुआ है। यह हम लोगों ही की मेहनत का फल है , लेकिन फिर भी हमारी मजूरी काटी जा रही है। धन- वानों का पेट कभी नहीं भरता। हम निर्बल हैं, निस्सहाय हैं, हमारी कौन सुनेगा। व्यापार-मण्डल उनकी ओर है, सरकार उनकी और है, मिल के हिस्सेदार उनकी और हैं, हमारा कौन है ? हमारा उद्धार तो भगवान् ही करेंगे।

एक मजूर बोला-सेठजी भी भगवान् के बड़े भगत हैं।

युवक ने मुसकराकर कहा-हाँ, बहुत बड़े भक्त हैं। यहां किसी ठाकुरद्वारे में उनके ठाकुरद्वारे की-सी सजावट नहीं है, कहीं इतने विधिपूर्वक भोग नहीं लगता, कहीं इतने उत्सव नहीं होते, कहीं ऐसी झांकी नहीं बनती। उसी भक्ति का प्रताप है कि आज नगर में इनका इतना सम्मान है। औरो का माल पड़ा सड़ता है, इनका माल गोदाम मे नहीं जाने पाता । वही भक्तराज हमारी मजूरी घटा रहे हैं । मिल में अगर घाटा हो तो हम आधी मजूरी पर काम करेंगे, लेकिन जव लाखों का लाभ हो रहा है, तो किस नीति से हमारी मजूरी घटाई जा रही है ? हम अन्याय नहीं सह सकते । प्रण कर लो कि किसी बाहरी आदमी को मिल में घुसने न देंगे, चाहे वह अपने साथ फौज लेकर ही क्यों न आये। कुछ परवाह नहीं, हमारे ऊपर लाठियां बरसे, गोलियां चले...

एक तरफ से आवाज़ आई-सेठजी !

सभी पीछे फिर फिरकर सेठजी की तरफ देखने लगे। सभी के चेहरों पर हवाइयाँ उड़ने लगी । कितने ही तो डरकर कांस्टेबलों से मिल के अन्दर जाने के लिए चिरौरी करने लगे, कुछ लोग रूई को गाँठो की आड़ में जा छिपे। थोड़े से आदमी कुछ -सहमे हुए- पर जैसे जान हथेली पर लिये-युवक के साथ खड़े रहे ।