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मानसरोवर


सवार हो जाऊँ और उससे मुंँह-दरमुंँह बातें करके इस समस्या की तह तक पहुंचने की चेष्टा करूं । अगर उसने मुझे कोई सन्तोषप्रद उत्तर न दिया, तो मैं उसका और अपना खून एक कर दूंँगा । या तो मुझी को फांसी होगी, या वहीं कालेपानी जायगा। कुमुम ने जिस धैर्य और साहस से काम लिया है, वह सराहनीय है। आप उसे सान्त्वना दीजिएगा। मैं आज रात को, गाड़ी से मुरादाबाद जाऊंँगा और परसों तक जैसी कुछ परिस्थिति होगी, उसको आपको सूचना दूंँगा। मुझे तो यह कोई चरित्र- हीन और बुद्धिहीन युवक मालूम होता है।

मैं उस बहक में जाने क्या-क्या बकता रहा । इसके बाद हम दोनों भोजन करके स्टेशन चले । वह आगरे गये, मैंने मुरादाबाद का रास्ता लिया। उनके प्राण अब भी सूखे जाते थे कि मैं क्रोध के आवेश में कोई पागलपन न कर बैलूं। बारे मेरे बहुत समझाने पर उनका चित्त शान्त हुआ।

में प्रातःकाल मुरादाबाद पहुंँचा और जांच शुरू कर दी। इस युवक के चरित्र के विषय मे मुझे जो सन्देह था, वह गलत निकला। महल्ले मे, कालेज में, उसके इष्ट- मित्रोमें, सभी उसके प्रशसक थे। अंधेरा और गहरा होता हुआ जान पड़ा । सन्ध्या- समय में उसके घर जा पहुंँचा। जिस निष्कपट भाव से वह दोड़कर मेरे पैरों पर झुका है, वह मैं नहीं भूल सकता। ऐसा वाक्-चतुर, ऐसा सुशील और विनीत युवक मैंने नहीं देखा। बाहर और भीतर में इतना आकाश पाताल का अन्तर मैंने कभी न देखा था। मैंने कुशल-क्षेम और शिष्टाचार के दो चार वाक्यों के बाद पूछा- तुमसे मिलकर चित्त प्रसन्न हुआ; लेकिन आखिर कुसुम ने क्या अपराध किया है, जिसका तुम उसे इतना कठोर दण्ड दे रहे हो। उसने तुम्हारे पास कई पत्र लिखे, तुमने एक का भी उत्तर न दिया। वह दो-तीन बार यहाँ भी आई । पर तुम उससे बोले तक नहीं। क्या उस निर्दोष बालिका के साथ तुम्हारा यह अन्याय नहीं है ?

युवक ने लज्जित भाव से कहा-बहुत अच्छा होता कि आपने इस प्रश्न को न उठाया होता। उसका जवाब देना मेरे लिए बहुत मुश्किल है। मैंने तो इसे आप लोगो के अनुमान पर छोड़ दिया था, लेकिन इस गलतफहमी को दूर करने के लिए मुझे विवश होकर कहना पड़ेगा।

यह कहते-कहते वह चुप हो गया। बिजली की बत्ती पर भांति-भांति के कीट- पतग जमा हो गये थे। कई झींगुर उछल-उछलकर मुंँह पर आ जाते थे, और‌