पृष्ठ:मानसरोवर २.pdf/१८९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०४
मानसरोवर


बार उसे आश्रम से निकाल दिया था । तबसे वह इसी महल्ले में एक कोठरी लेकर रहती थी और सारे मुहल्ले के शोहदो के लिए मनोरञ्जन का केन्द्र बनी हुई थी।

मुझे गंगू की सरलता पर क्रोध भी आया और दया भी। इस गधे को सारी दुनिया में कोई स्त्री ही न मिलती थी, जो इससे ब्याह करने जा रहा है। जब वह तीन बार पतियों के पास से भाग आई, तो इसके पास कितने दिन रहेगी ? कोई गांठ का पूरा आदमी होता, तो एक बात भी थी। शायद साल छः महीने टिक जाती । यह तो निपट आँख का अन्धा है । एक सप्ताह भी तो निबाह न होगा।

मैंने चेतावनी के भाव से पूछा---तुम्हे इस स्त्री की जोवन-कथा मालूम है ?

गंगू ने आँखों देखी बात की तरह कहा -सब झूठ है सरकार, लोगो ने हक- नाहक उसको बदनाम कर दिया है।

'क्या कहते हो, वह तीन बार अपने पतियों के पास से नहीं भाग आई ?'

'उन लोगो ने उसे निकाल दिया, तो क्या करती ?'

'कैसे बूद्धू आदमी हो । कोई इतनी दूर से आकर विवाह करके ले जाता है, हज़ारों रुपये खर्च करता है इसी लिए कि औरत को निकाल दे ?

गंगू ने भावुकता से कहा--जहाँ प्रेम नहीं है हजूर, वहाँ कोई स्त्री नहीं रह सकती। स्त्री केवल रोटी-कपड़ा ही नहीं चाहती, कुछ प्रेम भी तो चाहती है। वह लोग समझते होगे कि हमने एक विधवा से विवाह करके उसके ऊपर कोई बहुत बड़ा एहसान किया है। चाहते होंगे कि तन-मन से वह उनकी हो जाय , लेकिन दूसरे को अपना बनाने के लिए पहले आप उसका बन जाना पड़ता है हजूर ! यह बात है। फिर उसे एक बीमारी भी है। उसे कोई भूत लगा हुआ है। वह कभी-कभी बक-झक करने लगती है और बेहोश हो जाती है ।

'ओर तुम ऐसी स्त्री से विवाह करोगे ?'-मैंने सदिग्ध भाव से सिर हिलाकर कहा-ससझ लो, जीवन कड़वा हो जायगा ।

गंगू ने शहीदों के-से आवेश से कहा- मैं तो समझता हूँ, मेरी ज़िन्दगो व जायगी वाबूजी, आगे भगवान् की मर्जी !

मैंने जोर देकर पूछा -- तो तुमने तय कर लिया है ?

'हाँ, हजूर ।'

'तो मैं तुम्हारा इस्तीफा मंजूर करता है।'