मंगल ने कहा-तो तुम जाओ, जो कुछ मिले खा लो, मेरी परवाह न करो। टामी ने अपनी श्वान-भाषा में कहा --अकेला नहीं जाता, तुम्हे साथ लेकर चलूँगा।
'मैं नहीं जाता।'
'तो में भी नहीं जाता।'
'भूखों मर जाओगे।'
'तो क्या तुम जीते रहोगे।'
'मेरा कौन बैठा है, जो रोयेगा।'
यहाँ भी वही हाल है भाई। क्वार में जिस कुतिया से प्रेम किया था, उसने वेवफाई की और अव कल्लू के साथ है। खैरियत यही हुई कि अपने बच्चे लेती गई, नहीं मेरो जान गाढे में पड़ जाती । पांच-पांच बच्चों को कौन पालता ?
एक क्षण के बाद भूख ने एक दूसरी युक्ति सोच निकाली ?
'मालकिन हमे खोज रही होगी, क्यों टामी !'
'और क्या। बाबूजी और सुरेश खा चुके होगे। कहार ने उनकी थाली से जूठन निकाल लिया होगा और हमें पुकार रहा होगा।'
'बाबूजी और सुरेश दोनों के थालियों में घी खूब रहता है, और वह मीठी- मोठी चीज़-हा मलाई।
'सबका सब धूरे पर डाल दिया जायगा।'
'देखें, हमें खोजने कोई आता है ?'
'खोजने कोन आयेगा, क्या कोई पुरोहित हो । एक बार मंगल-मंगल होगा और बस, थाली परनाले में उँङेल दी जायगी।'
'अच्छा तो चलो चलें , मगर मैं छिया रहूँगा। अगर किसीने मेरा नाम लेकर न पुकारा, तो में लौट आऊँगा । यह समझ लो।'
दोनो वहां से निकले और आकर महेशनाथ के द्वार पर अंधेरे में दबककर खड़े हो गये , मगर टामी को सत्र कहाँ । वह वीरे से अन्दर घुस गया । देखा, महेशनाथ और सुरेश पाली पर बैठ गये हैं। बरौंठे में धीरे से बैठ गया , मगर दर रहा था कि कोई उस न मार दे।
नौकरों ने बातचीत हो रही थी। एक ने कहा-आज मॅगल्वा नहीं दिखाई देता। मालकिन ने डोटा था. इमी से भागा है साहब।