'तुम पीछे से निकल जाओगे । पहले तुम घोड़ा बन जाओ। मैं सवारी कर लूँ, फिर मैं बनूँगा।'
सुरेश ने सचमुच चकमा देना चाहा था ! मंगल का यह मुतालबा सुनकर साथियों से बोला--देखते हो इसकी बदमाशी, भगी है न ?
तीनो ने मंगल को घेर लिया और उसे जबरदस्ती घोड़ा बना दिया। सुरेश ने चटपट उसकी पीठ पर आसन जमा लिया और टिकटिक करके बोला-चल घोड़े, चल! मगल कुछ दूर तक तो चला, लेकिन उस वोझ से उसको कमर टूटी जाती थी। उसने धीरे से पीठ सिकोड़ी और सुरेश की रान से नीचे सरक गया। सुरेश महोदय लद से गिर पड़े और भोपू बजाने लगे।
मां ने सुना, सुरेश कहाँ रो रहा है। सुरेश कहीं रोये, उनके तेज कानो में जरूर भनक पड़ जाती थी, और उसका रोना भी बिलकुल निराला होता था जैसे छोटो लाइन के इंजन को आवाज़ ।
महरी से बोली-देख तो, सुरेश कहीं रो रहा है, पूछ, किसने मारा है ?
इतने मे सुरेश खुद आखें मलता हुआ आया । उसे जब रोने का अवसर मिलता था, तो मां के पास फरियाद लेकर जरूर आता था। मां मिठाई या मेवे देकर आंसू पोछ देती थी। आप थे तो आठ साल के , मगर बिलकुल गावदी। हद से ज्यादा प्यार उसकी बुद्धि के साथ वही किया था, जो हद से ज्यादा भोजन ने उसकी देह के साथ।
मां ने पूछा- क्यो रोता है सुरेश, किसने मारा ?
सुरेश ने रोकर कहा---मंगल ने छू दिया।
मां को विश्वास न आया। मगल इतना निरीह था कि उससे किसी तरह की शरारत की शंका न होती थी, लेकिन जब सुरेश क़समें खाने लगा, तो विश्वास करना लाज़िम हो गया। मंगल को वुलवाकर डाटा क्यों रे मंगल, अब तुझे वद- माशी सूझने लगी ? मैंने तुम्झसे कहा था, सुरेश को कभी मत छूना, याद है कि नहीं, बोल!
मंगल ने दबी आवाज़ से कहा - याद क्यों नहीं है।
'तो फिर तूने उसे क्यो छुआ ?'
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