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मानसरोवर


राजा का कर्तव्य केवल अपने अफसरों को प्रसन्न करना नहीं है। प्रजा को पालने ज़िम्मेदारी इससे कही बढ़कर है।

उसी समय महाराज ने कमरे में कदम रखा। रानी ने उठकर स्वागत किया और सुनीता सिर झुकाये निःस्पन्द खड़ी रह गई ।

राजा ने व्यग्यपूर्ण मुस्कान के साथ पूछा-वह कौन महिला तुम्हें राजा के कर्तव्य का उपदेश दे रही थी।

रानी ने सुनीता की ओर आँखें मारकर कहा-यह दीवान साहब की धर्मपत्नी हैं। राजा की त्योंरियां चढ़ गई। ओठ चबाकर बोले-~-जब माँ ऐसी पैनो छुरी है, तो लड़का क्यों न जहर का वुझाया हुआ हो ! देवीजी, मैं तुमसे यह शिक्षा नहीं लेना चाहता कि राजा का अपनी प्रजा के साथ क्या धर्म है। यह शिक्षा मुझे कई पीढ़ियों से मिलती चली आई है। बेहतर हो कि तुम किसीसे यह शिक्षा प्राप्त कर लो कि स्वामी के प्रति उसके सेवक का क्या धर्म है, और जो नमकहराम है, उसके साथ स्वामी को कैसा व्यवहार करना चाहिए।

यह कहते हुए राजा साहब उसी उन्माद की दशा में वाहर चले गये। मि० -मेहता घर जा रहे थे कि राजा साहब ने कठोर स्वर में पुकारा-सुनिए मि० मेहता, आपके सपूत तो विदा हो गये ; लेकिन मुझे अभी मालूम हुआ कि आपकी देवीजी राजद्रोह के मैदान में उनसे भी दो कदम आगे हैं ; बल्कि मैं तो कहूंगा, वह केवल रेकर्ड है, जिसमें देवीजी की ही आवाज़ बोल रही है। मैं नहीं चाहता कि जो व्यक्ति रियासत का संचालक हो, उसके साये में रियासत के विद्रोहियों को आश्रय मिले । आप खुद इस दोष से मुक्त नहीं हो सकते । यह हरगिज़ मेरा अन्याय न होगा, यदि मैं यह अनुमान कर लूँ कि आप ही ने यह मन्त्र फूँका है।

मि० मेहता अपनी स्वामि-भक्ति पर यह आक्षेप न सह सके । व्यथित कंठ से बोले-यह तो मैं किस ज़बान से कहूँ कि दीनबन्धु इस विषय में मेरे साथ अन्याय कर रहे हैं , लेकिन मैं सर्वदा निर्दोष हूँ और मुझे यह देखकर दुःख होता है कि मेरी वफादारी पर यों संदेह किया जा रहा है।

'वफादारी केवल शब्दो से नहीं होती।'

'मेरा खयाल है कि मैं उसका प्रमाण दे चुका।'

'नयो-नयी दलीलों के लिए नये-नये प्रमाणों की जरूरत है। आपके पुन्न के लिए