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रियासत का दीवान

भड़काना कोई भले आदमी का काम है ? जिस पत्तल में खाओ, उसीमें छेद करो। महाराज ने दीवान साहब का मुलाहजा़ किया, नहीं उसे हिरासत में डलवा देते । अब बच्चा नहीं है। खासा पांच हाथ का जवान है। सब कुछ देखता और समझता है । हम हाकिमों से वैर करें, तो के दिन निबाह हो । उसका क्या बिगड़ता है । कहीं सौ- पचास की चाकरी पा जायगा । यहाँ तो करोड़ो की रियासत बरबाद हो जायगी।

सुनीता ने अंचल फैलाकर कहा-महारानी बहुत सत्य कहती हैं , पर अब तो उसका अपराध क्षमा कीजिए। बेचारा लज्जा और भय के मारे घर नहीं गया। न- जाने किधर चला गया। हमारे जीवन का यही एक अवलम्बन है, महारानी ! हम दोनों रो-रोकर मर जायेंगे। अञ्चल फैलाकर आपसे भीख मांगती हूँ, उसको क्षमा- दान दीजिए। माता के हृदय को आपसे ज्यादा और कौन समझेगा, आप महाराज से सिफारिश कर दें

महारानो ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से उसकी और देखा , मानो वह कोई बड़ी अनोखी बात कह रही हो और अपने रँगे हुए ओठो पर अंगूठियों से जगमगाती हुई उँगली रखकर बालो-क्या कहती हो सुनीता देवी। उस युवक की महाराज से सिफारिश करूँ, जो हमारी जड़ खोदने पर तुला हुआ है ? आस्तीन में साँप पालूं ? ना, मैं इसके बीच मे न पङूँगी। उसने जो बीज बोये है, उनका फल खाये। मेरा लड़का ऐसा नाखलक होता, तो उसका मुंह न देखती। और, तुम ऐसे बेटे की सिफारिश करती हो।

सुनीता ने आँखो में आँसू भरकर कहा-महारानी, एसी बातें आपके मुँह से गोभा नहीं देती।

महारानी मसनद टेककर उठ बैठी, और तिरस्कार के स्वर में बोली-अगर तुमने सोचा था कि मैं तुम्हारे आँसू पोछूँगी, तो तुमने भूल की। हमारे द्रोही की सिफा- रिश लेकर हमारे ही पास आना, इसके सिवा और क्या है, कि तुम उसके अपराव को बाल-क्रीड़ा समझ रही हो। अगर तुमने उसके अपराध की भीषणता का ठीक अनुमान किया होता, तो मेरे पास कभी न आती । जिसने इस रियासत का नमक खाया हो, वह रियासत के द्रोही की पीठ सहलाये। वह स्वयं राजद्रोही है। इसके सिवा और क्या कहूँ।

सुनीता भी गर्म हो गई। पुत्र-स्नेह म्यान के बाहर निकल आया , बोली-

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