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रियासत का दीवान


पर लगाम न रखने का क्या नतीजा होता है। मैं क्यों उसके पीछे गली-गली ठोकरें खाऊँ ? हां, मुझे यह पद और सम्मान प्यारा है। क्यों न प्यारा हो। इसके लिए बरसो एड़ियाँ रगड़ी है, अपना खून और पसीना एक किया है। यह अन्याय बुरा जरूर लगता है , लेकिन बुरी लगने को यही एक बात तो नहीं है। और हजारों बाते भी तो बुरी लगती है। जब किसी बात का उपाय मेरे पास नहीं, तो इस मुआमले के पीछे क्यों अपनी ज़िन्दगी खराब करूँ।

उन्होने घर मे आते-ही-आते पुकारा - जयकृष्ण ।

सुनीता ने कहा -जयकृष्ण तो तुमसे पहले ही राजा साहब के पास गया था। तबसे यहां कब आया ?

'अब तक यहां नहीं आया ? वह तो मुझमे पहले ही चल चुका था ।'

वह फिर बाहर आये और नौकरों से पूछना शुरू किया । अब भी उसका पता न था। मारे डर के कहीं छिप रहा होगा। और राजा ने आध घटे में इत्तला देने का हुक्म दिया है। यह लौडा न जाने क्या करने पर लगा हुआ है। आप तो जायगा ही, मुझे भी अपने साथ ले डूबेगा ।

सहसा एक सिपाही ने एक पुरजा लाकर उनके हाथ मे रख दिया। अच्छा, यह तो जयकृष्ण की लिखावट है । क्या कहता है- इस दुर्दशा के बाद मैं इस रियासत में एक क्षण भी नहीं रह सकता । मैं जाता हूँ। आपको अपना पद और मान अपनी आत्मा से ज्यादा प्रिय है, आप खुशी से उसका उपभोग कीजिए। मैं फिर आपको तकलीफ देने न आऊँगा । अम्माँ से मेरा प्रणाम कहिएगा !

मेहता ने पुरजा लाकर सुनीता को दिखाया और खिन्न होकर बोले-इसे न जाने कब समझ आयेगी , लेकिन बहुत अच्छा हुआ। अब लाला को मालूम होगा, दुनिया में किस तरह रहना चाहिए। बिना ठोकरें खाये आदमी की आंखें नहीं खुलतीं। मैं ऐसे तमाशे बहुत खेल चुका। अब इस खुराफात के पीछे अपना शेष जीवन नहीं बरबाद करना चाहता-और तुरन्त राजा साहब को सूचना देने चले।

(२ )

दम-के दम मे सारी रियासत में यह समाचार फैल गया। जयकृष्ण अपने शील- स्वभाव के कारण जनता मे बड़ा प्रिय था । लोग बाज़ारों और चौरस्तों पर खड़े हो- होकर इस काण्ड पर आलोचना करने लगे-अजी, वह आदमी नहीं था भाई, उसे