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दो बैलों की कथा

'कुछ परवाह नहीं। यों भी तो मरना ही है । सोचा की दीवार खूद जाती, तो कितनी जाने बच जाती ? इतने भाई यहाँ बन्द हैं। किसी देह मे जान नहीं है। दो- चार दिन और यही हाल रहा, तो सब मर जायेंगे।'

'हाँ, यह बात तो है । अच्छा तो लो फिर मैं भी जोर लगाता हूँ।'

मोती ने भी दीवार मे उसी जगह सींग मारा। थोड़ी-सी मिट्टी गिरी और हिम्मत बढी। फिर तो वह दीवार में सींग लगाकर इस तरह जोर करने लगा, मानो किसी द्वन्द्वी से लड़ रहा है । आखिर कोई दो घटे की जोर-आजमाई के बाद दीवार ऊपर से लगभग एक हाथ गिर गई। उसने दूनी शक्ति से दूसरा धक्का मारा, तो आधी दीवार गिर पड़ी।

दीवार का गिरना था कि अधमरे-से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे। तीनों घोड़ियां सरपट भाग निकली। फिर बकरियाँ निकली। इसके बाद भैसें भी खिसक गई , पर गधे अभी तक ज्यों-के-त्यों खड़े थे।

हीरा ने पूछा--तुम दोनों क्यों नहीं भाग जाते ?

एक गधे ने कहा-जो कहीं फिर पकड़ लिये जायँ ?

'तो क्या हरज है । अभी तो भागने का अवसर है?'

'हमें तो डर लगता है । हम यहीं पड़े रहेंगे।

आधी रात से ऊपर जा चुकी थी। दोनो गधे अभी तक खड़े सोच रहे थे, भागे या न भागें । और मोती अपने मित्र की रस्सी तोड़ने में लगा हुआ था। जब वह हार गया तो, हीरा ने कहा--तुम जाओ, मुझे यहीं पड़ा रहने दो। शायद कहीं भेंट हो जाय।

मोती ने आँखों में आंसू लाकर कहा-तुम मुझे इतना स्वार्थी समझते हो हीरा ? हम और तुम इतने दिनो एक साथ रहे। आज तुम विपत्ति में पड़ गये, तो मैं तुम्हे छोड़कर अलग हो जाऊँ ?

हीरा ने कहा--बहुत मार पड़ेगी। लोग समझ जायेंगे, यह तुम्हारी शरारत है।

मोती गर्व से चोला--जिस अपराध के लिए तुम्हारे गले में बंधन पड़ा, उसके लिए अगर मुझपर मार पड़े, तो क्या चिन्ता। इतना तो हो ही गया कि, नौ-दस प्राणियो की जान बच गई। वह सब तो आशीर्वाद देंगे ?