पृष्ठ:मानसरोवर २.pdf/१४५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४४
मानसरोवर


की। तुमने जो कुछ खिलाया वह सिर झुकाकर खा लिया, फिर तुमने हमें इस ज़ालिम के हाथ क्यों बेच दिया !

सन्ध्या समय दोनो बैल अपने नये स्थान पर पहुंचे । दिन-भर के भूखे थे। लेकिन जब नाद मे लगाये गये, तो एक ने भी उसमे मुंँह न डाला। दिल भारी हो रहा था । जिसे उन्होने अपना घर समझ रखा था, वह आज उनसे छूट गया था। यह नया घर, नया गाँव, नये आदमी, सब उन्हें बेगानों-से लगते थे।

दोनों ने अपनी मूकभाषा में सलाह की, एक दूसरे को कनखियों से देखा और लेट गये । जब गाँव मे सोता पड़ गया, तो दोनो ने जोर मारकर पगहे तुड़ा डाले और घर की तरफ चले ! पगहे बहुत मजबूत थे। अनुमान न हो सकता था कि कोई बैल उन्हें तोड़ सकेगा ; पर इन दोनों में इस समय दूनी शक्ति आ गई थी। एक-एक झटके में रस्सियाँ टूट गई।

झूरी प्रातःकाल सोकर उठा, तो देखा बैल चरनी पर खड़े हैं। दोनों की गरदनों में आधा-आधा गरांँव लटक रहा है। घुटनो तक पाँव कीचड़ से भरे हैं, और दोनों की आँखों में विद्रोहमय स्नेह झलक रहा है।

झूरी बैलो को देखकर स्नेह से गद्गद हो गया। दौड़कर उन्हें गले लगा लिया । प्रमालिगन और चुम्बन का वह दृश्य बड़ा ही मनोहर था।

घर और गाँव के लड़के जमा हो गये और तालियाँ बजा-बजाकर उनका स्वागत करने लगे। गाँव के इतिहास में यह घटना अभूत-पूर्व न होने पर भी महत्त्वपूर्ण थी। वाल-सभा ने निश्चय किया, दोनों पशु-वीरों को अभिनन्दन-पत्र देना चाहिए। कोई अपने घर से रोटियाँ लाया, कोई गुड़, कोई चोकर, कोई भूसी ।

एक बालक ने कहा-ऐसे बैल किसीके पास न होंगे।

दूसरे ने समर्थन किया-- इतनी दूर से दोनों अकेले चले आये ।

तीसरा बोला-बैल नहीं हैं वे, उस जनम के आदमी हैं।

इसका प्रतिवाद करने का किसीको साहस न हुआ।

झूरी को स्त्री ने बैलों को द्वार पर देखा, तो जल उठी। बोली- कैसे नमकहराम बैल हैं कि एक दिन भी वहाँ काम न किया ; भाग खड़े हुए।

झूरी अपने बैलों पर यह अक्षेप न सुन सका---नमकहराम क्यों है ? चारा-दाना न दिया होगा, तो क्या करते !