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मानसरोवर


करें कि मुंह से फूल झड़ें, खाना ऐसा पकायें कि बीमार को भी रुचि हो, सीने-पिरोने मे इतनी कुशल कि पुराने कपडे को नया कर दें ।

अ॰ आ॰--मैं इन गुणो मे से किसी का भी उपासक नहीं। मैं प्रेम-और केवल प्रेम - का उपासक हूँ। और मुझे विश्वास है कि जैनब का-सा प्रेम मुझे सारी दुनिया में कहीं नहीं मिल सकता ।

अ॰ सि॰--प्रेम होता, तो तुम्हे छोड़कर यह बेरफाई करती !

अ० आ०-मैं नहीं चाहता कि मेरे लिए वह अपने आत्म-स्वातत्र्य का त्याग करे।

अ० सि० इसका आशय यह कि तुम समाज में समाज के विरोधी बनकर रहना चाहते हो। आँखों को कसम ! समाज तुम्हें अपने ऊपर यह अत्याचार न करने देगा। मैं कहे देता हूँ, इसके लिए तुम रोओगे।

(‌ ४ )

अबूसिफियान और उनकी टोली के लोग तो धमकियां देकर उधर गये, इधर अवुलआस ने लकड़ी सॅभाली और हज़रत मुहम्मद के घर जा पहुंचे। शाम हो गई थी। हज़रत दरवाज़े पर अपने मुरीदों के साथ सगरिब की नमाज पढ रहे थे। अबुलआम ने उन्हे सलाम किया और जब तक नमाज होती रही, गौर से देखते रहे। जमाअत का एक साथ उठना, बैठना ओर झुकना देखकर उनके मन में श्रद्धा की तरंगें उठने लगी। उन्हें मालूम न होता था कि मैं क्या कर रहा हूँ, पर अज्ञात भाव से वह जमाअत के साथ बैठते, झुकते और खड़े हो जाते थे। वहाँ एक-एक परमाणु इस समय ईश्वरमय हो रहा था । एक क्षण के लिए अबुलआस भी उसी अन्तर-प्रवाह में वह गये।

जब नमाज खतम हुई और लोग सिवारे, तो अवुलआरा ने हजरत के पास जाकर सलाम किया और कहा-मैं जैनब को विदा कराने आया हूँ।

हज़रत ने विस्मित होकर पूछा- तुम्हे मालूम नहीं कि वह खुदा और उसके रसूल पर ईमान ला चुकी है ? .

अ० आo-~-जी हाँ, मालूम है।

हजरत-इस्लाम ऐसे सम्बन्धों का निषेध करता है, यह भी तुम्ह मालम है ?

अ० आ०-या इसका मतलब यह है कि ज़ैनब ने मुझे तलाक दे दिया ?