पद से इस्तीफा था, दूसरा जेनी से अंतिम विदा की सूचना । इस्तीफे मे उसने
लिखा--मेरा स्वास्थ्य नष्ट हो गया है, और मैं इस भार को नहीं संभाल सकता ।
जेनी के पत्र में उसने लिखा- मैं और तुम दोनों ने भूल की और हमे जल्द-से-जल्द
उस भूल को सुधार लेना चहिए । मैं तुम्हे सारे बंधनों से मुक्त करता हूँ। तुम भी
मुझे मुक्त कर दो। मेरा तुमसे कोई सम्बन्ध नहीं है। अपराध न तुम्हारा है, न
मेरा । समझ का फेर तुम्हें भी था और मुझे भी। मैंने अपने पद से इस्तीफा दे
दिया है, और अब तुम्हारा मुझ पर कोई एहसान नहीं रहा। मेरे पास जो कुछ है,
वह तुम्हारा है, वह सब मैं छोड़े जाता हूँ। मैं तो निमित्त मात्र था, स्वामिनी तुम
थीं। उस सभ्यता को दूर से ही सलाम है, जो विनोद और विलास के सामने किसी
बंधन को स्वीकार नहीं करती।
उसने खुद जाकर दोनो पत्रों की रजिस्टरी कराई और बिना उत्तर का इंतजार किये वहाँ से चलने को तैयार हो गया।
( ६ )
जेनी ने जब मनहर का पत्र पाकर पढा तो मुस्किराई। उसे मनहर की इच्छा पर शासन करने का ऐसा अभ्यास पड़ गया था कि इस पत्र से उसे जरा भी घबराहट न हुई। उसे विश्वास था कि दो-चार दिन चिकनी-चुपड़ी बातें करके वह उसे फिर वशीभूत कर लेगी, अगर मनहर की इच्छा वेवल धमकी देना न होती, उसके दिल पर चोट लगी होती, तो वह अब तक यहाँ न होता। कबका वह स्थान छोड़ चुका होता। उसका यहाँ रहना ही बता रहा था कि वह वेवल बॅदरघुड़की दे रहा है।।
जेनी ने स्थिरचित्त होकर कपड़े बदले और तब इस तरह मनहर के कमरे में आई, मानो कोई अभिनय करके स्टेज पर आई हो ।
मनहर उसे देखते ही ज़ोर से ठट्टा मारकर हँसा । जेनी सहमकर पीछे हट गई। इस हँसी में क्रोध या प्रतीकार न था। इसमें उन्माद भरा हुआ था । मनहर के सामने मेज़ पर बोतल और गिलास रखा हुआ था। एक दिन मे उसने न जाने कितनी शराब पी ली थी। उसकी आँखो में जैसे रक्त उबला पड़ता था।
जेनी ने समीप जाकर उसके कन्धे पर हाथ रखा और बोली- क्या रात-भर पाते ही रहोगे ? चलो, आराम से लेटो, रात ज्यादा आ गई है। घण्टों से उठी तुम्हारा इन्तजार कर रही हूँ। तुम इतने निष्ठुर तो कभी न थे।