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बड़े भाई साहब


मगर बटेर केवल एक बार हाथ लग सकती है, बारबार नहीं लग सकती। कभी-कभी गुस्ली-डंडे में भी अन्धा-चोट निशाना पड़ जाता है। इससे कोई सफल खिलाड़ी नहीं हो जाती। सफल खिलाड़ी वह है, जिसका कोई निशाना खाली न जाय। मेरे फेल होने पर मत जाओ। मेरे दरजे में आओगे, तो दाँतों पसीना जायगा, जब अलजबर। और जामेट्री के लोहे के चने चबाने पड़ेंगे, और ईगलिस्तान का इतिहास पढ़ना पड़ेगा। बादशाहों के नाम याद रखना आसान नहीं। आठ-आठ हेनरी हो गुजरे हैं। कौन-सा काण्ड किस हेनरी के समय में हुआ, क्या यह याद कर लेना आसान समझते हो ? हेनरी सातवें की जगह, हेनरी आठवाँ लिखा और सन नम्बर पायब ! सुप्फाचट ! सिफर भी न मिलेगा, फिर भी। हो किस खाल में। दर ते जेम्स हुए हैं, दरजन विलियम, कोड़ियों चाल्र्स ! दिमास चक्कर खाने लगता है। आँधो रोग हो जाता है। इन अभाग को नाम भो न जुड़ते थे। एक ही नाम के पोछे दोयम, सेयम, चहारम, पचम लगाते चक्रे गये। मुझसे पूछते, तो दस लाख नाम बता देता। और जामेट्री तो बस खुद को पनाह। अ ब ज को जगह अ ज ब लिख दिया और सारे नम्मर कट गये। कोई इन निर्दयी मुमतहि से नहीं पूछता कि आखिर अ ब ज और अ ज व में क्या फर्क है, और व्यर्थ की बात के लिए के छात्रों का खून करते हो। दाल-भात-रोटी खाई या भात-दाल रोट खाई, इसमें क्या रखा है ; मगर इन परीक्षकों को क्या परवाह‌। वेई तो वह देखते हैं, जो पुस्तक में लिखा है। चाहते हैं। कि लड़के अक्षर-अक्षर रट हाले। और इसी रटने का नाम शिक्षा का छोड़ा है। और आखिर इन बे-सिर पैर की बात के पढ़ने से फायदा है इस रेखा पर चइ लम्ब गिरा द, तो आधार लम्ब से दुना होगा। पूछिए, इसे प्रयोजन ? दुगना नहीं, चौगुना हो जाय, या आधा ही रहे, मेरी बला से , लेकिन परीक्षा में पास होना है, तो यह सब खुराफात याद रखनी पड़ेगी। कह दिया---'समय को पाबन्दी’ पर एक निबन्धु लिखौ, जें चार पन्नों से कम न हो। अब आप काॅपी सामने खोले, काम हाथ में जिये, उसके नाम को रोइए। कौन नहीं जानता कि समय को पाबन्दी बहुत अच्छी बात है, इससे आदमी के जीवन में सयम आ जाता है, दूअरों की बस पर स्नेह होने लगता है और उसके कारोबार में उन्नति होती है। लेकिन इस धरा-सी बात पर चार पन्ने कैसे लिखें। जो बात एक वाक्य में कहा जा सके, इसे चार पक्षों में लिखने को, ज़रूरत ? मैं तो इसे दिमाक इतः हूँ। यह तो समय को किफायत नहीं ; बल्कि