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मानसरोवर


उसे सरोकार न था। उससे कोई सलाह भी ली गई तो यही कहा --- बेटा, तुम लोग जो करते हो, अच्छा ही करते हो, मुझसे क्या पूछते हो।

जब कुमुद के लिए द्वार पर डोली आ गई और कुमुद माँ के गले लिपटकर रोने लगी, तो वह बेटी को अपनी कोठरी में ले गई और जो कुछ सौ-पचास रुपये और दो-चार मासूली गहने उसके पास बच रहे थे, बेटो के अञ्चल में डालकर बोली-बेटी, . मेरी तो मन की मन में रह गई ; नहीं, क्या आज तुम्हारा विवाह इस तरह होता और तुम इस तरह विदा की जाती।

आज तक फूलमती ने अपने गहनों को मात किसी से न हो थी। लड़कों ने उसके साथ जो कण्ट व्यवहार किया था, इसे चाहे वह अब तक न समझो हो लेकिन इतना जानती थी कि गहने फिर न मिलेंगे और मनोमालिन्य बढ़ने के सिवा कुछ हाथ न लगेगा, लेकिन इस अवसर पर उसे अपनी सफाई देने की ज़रत मालूम हुई। कुमुद यह भाव मन में लेकर जाये कि अम्मा ने अपने गहने बहुओं के लिए रख छोड़े, इसे वह किस तरह न सह सकती थी, इसीलिए वह अग्नी कोठरी में ले गई थी। लेकिन कुमुद को पहले ही इस कौशल की टोह मिल चुको थौ ; उसने गहने और रुपये अञ्चल से निकालकर माता के चरणों पर रख दिये और बालो --- अम्माँ, मेरे लिए तुम्हारा आशीर्वाद लाखों रुपयों के बराबर है। तुम इन चीजों को अपने पास रखो। न जाने अभी तुम्हें किन विपत्तियों का सामना करना पड़े।

फूलमती कुछ कहना ही चाहती थी कि उमानाथ ने आकर कहा-क्या कर रहो है कुमुद ? चल, जल्दी कर। साइत टली जाती है। वह लोग हाय-हाय कर रहे हैं, फिर तो दो-चार महीने में आयेगो हो, जो कुछ लेना-देना हो, ले लेना।

फूलमती के घाव पर जैसे मनों नमक पड़ गया। बोली --- मेरे पास अब क्या है भैया, जो मैं इसे दंगो ? जाओ बेटी, भगवान् तुम्हारा सोहाग अमर करें।

कुमुद विदा हो गई। फूलमती पछाड़ खाकर गिर पड़ी। जीवन की अन्तिम लालसा नष्ट हो गई।

( ६ )

एक साल बीत गया।

फूलमती का कमरा घर में सब कमरों से बह और हवादार था। कई महीनों से उसने उसे बड़ी बहू के लिए खाली कर दिया था और खुद एक छोटी-सी कोठरी में