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बेटोंवाली विधवा


लेकिन जब दयानाथ से यहो प्रश्न किया गया, तो वह उमानाथ से सहयोग करने को तैयार हो गया। दस हज़ार में ढाई हजार तो उसझे होंगे ही। इतनी बड़ी रकम के लिए यदि कुछ कौशल भी करना पड़े तो क्षम्य है।


फूलमती रात को भोजन काके लेटो थी कि उमा और दया उसके पास जाकर बैठ गये। दोनों ऐसा मुंह बनाये हुए थे, मानों कोई भारी विपत्ति आ पड़ी है। फूल- मतो ने सशक होकर पूछा तुम दोनों घबड़ाये हुए मालम होते हो ?

उमा ने सिर खुजलाते हुए कहा --- समाचार-पत्रों में लेख लिखना बड़े जोखिम का काम है अम्मा ! कितना हो बचकर लिखो। लेकिन कहीं-न-कहीं पकड़ हो ही जाती है। दयानाथ ने एक लेख लिखा था। उस पर पांच हजार की जमानत मांगी गई है। अगर कल तक जमानत न जमाकर दी गई, तो गिरफ्तार हो जायंगे और इस साल की सजा ढुक जायगी।

फूलमती ने सिर पीटकर कहा --- तो ऐसी बातें क्यों लिखते हो देटा ? जानते नहीं हो आजकल हमारे अदिन भाये हुए हैं। जमानत किसी तरह टल नहीं सकती ?

दयानाथ ने अपराधी-भाव से उत्तर दिया --- मैंने तो अम्मा ऐसा कोई नहीं लिखी थी। लेकिन किस्मत को क्या करूँ। हाकिम जिला इतना कहा है कि जा भी रिआयत नहीं करता। मैंने जितनी दौड़ धूप हो सकती थी, वह सब कर लो।

'तो तुमने कामता से रुपये का प्रबन्ध करने को नहीं कहा ?'

उमा ने मुंह बनाया --- उनका स्वभाव तो तुम जानती हो अम्माँ, उन्हे रुपये प्राणों से प्यारे हैं इन्हे चाहे काला पानी ही हो जाय, वह एक पाई न देंगे।

दया ने समर्थन किया --- मैंने तो उनसे इसका जिक्र ही नहीं किया।

फूलमती ने चारपाई से उठते हुए कहा-चलो, मैं शहती हूँ, देगा कैसे नहीं ? रुपये इसो दिन के लिए होते हैं कि गाड़कर रखने के लिए?

उमानाथ ने माता को रोककर कहा नहीं अम्मा, उनसे कुछ न कहो। रुपये तो न देंगे, उलटे और हाय हाय मनायेंगे। उनको अपनी नौकरी की खैरियत मनानी है, इन्हें घर में रहने भी न देंगे। अफसरों में जाकर खबर दे दे तो आश्चर्य नहीं।

फूलमती ने लाचार होकर कहा --- तो फिर जमानत का क्या प्रबन्ध करोगे ? मेरे पास तो कुछ नहीं है। हाँ, मेरे गहने हैं, इन्हे ले जाव, कहीं गिरों रखकर ज़मा-