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माँ


नहीं हुए हैं। यह उपाधि लेकर वास्तव में मैंने अपने सेवा-मार्ग से एक वाधा हटा दो है। हमारे नेता भी योग्यता, सदुत्साह, लगन का उतना सम्मान नहीं करते जितना उपाधियों छ । अब सब मेरी इज्जत करेंगे, और ज़िम्मेदारी का काम सौंपेंगे, जो पहले मांगे भी न मिलता।

करुणा की आस फिर बंधी।

( ४ )

विद्यालय खुलते ही प्रकाश के नाम रजिस्ट्रार का पत्र पहुँचा। उन्होंने प्रकाश ॐ इगलैंड जाकर विद्याभ्यास करने के लिए सरकारी वज़ीफे की मंजूरी की सूचना दीं थो। प्रकाश पत्र हाथ में लिये हर्ष के उन्माद में जाकर माँ से बोला----अम्माँ, मुझे इगलैंड जाकर पढ़ने के लिए सरकारी वज़ीफा मिल गया।

करुणा ने उदासीन भाव से पूछा --- तो तुम्हारा क्या इरादा हैं ?

प्रकाश --- मेरा इरादा ? ऐसा अवसर पाकर भला कौन छौड़ता है ।

करुणा --- तुम तो स्वयसेवकों में भरती होने जा रहे थे ?

प्रकाश --- तो क्या आप समझती हैं, स्वयं सेवक बन जाना ही जाति सेवा है ? मैं इगलैड से आकर भो तो सेवा कार्य कर सकता हूँ, और अम्माँ, सच पूछो, तो एक मैजिस्ट्रेट अपने देश का जितना उपकार कर सकता है, उतना एक हजार वयखेदङ मिलकर भी नहीं कर सकते। मैं तो सिविल सर्विस की परीक्षा में बैटू गा, और मुझे विश्वास है कि सफल हो जाऊँगा।

करुणा ने चकित होकर पूछा---तो क्या तुम मैजिस्ट्रेट हो जाओगे ?

प्रकाश---सेवा-भाव रखनेवाला एक मैजिस्ट्रेट काग्रेस के एक हज़ार सभापतियों से ज्य दा उपकार कर सकता है। अखबारों में उसकी लव-लची तारीफें न छपेंगी, उसकी वक्तृताओं पर तालियों ने बजेगी, जनता उसके जुलूस को गाड़ी न खींचेगी, और न विद्यालय के छात्र उसको अभिनंदन-पत्र देंगे ; पर सच्ची सेवा मैजिस्ट्रेट ही कर सकता है।

करुणा ने आपत्ति के भाव से कहा-लेकिन यही मैजिस्ट्रेट तो जाति के सेवक को सज़ाएँ देते हैं, उन पर गोलियां चलाते हैं ?

प्रकाश---अगर मैजिस्ट्रेट के हृदय में परोपकार का भाव है, तो वह नरमी से वही काम करता है, जो दूसरे गोलियाँ चलाकर भी नहीं कर सकते ।