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ईदगाह


हिन्द है। अब इसमें मोहसिन, महमूद, नुरे, सम्मी, किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती।

विजेता को हारनेवालों से जो सरकार मिलना स्वाभाविक है, वह हामिद को भी मिला। औरों ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे खर्च किये , पर ई काम की चीज न ले सके। हामिद ने तीन पैसे में रंग जमा लिया। सच ही तो है, खिलौनों का क्या भरोसा ? ट-फूट जायँगे। हामिद का चिमटा तो बना रहेगा बरस।

सन्धि की शर्त तय होने लगी। मोहसिन ने कहा---ज़रा अपनी चिमटा दो, हम भी देखें। तुम हमारा भिश्ती लेकर देखो।

महमूद धौर नूरे ने भी अपने-अपने खिलौने पेश किये।

हामिद को इन शर्तों के मानने में कोई पत्ति न थो। चिमठा वारो-शारों से सबके हाथ में गया ; और उनके खिलौने वारो-वारों से हामिद के हाथ में आये। कितने खूबसूरत खिलौने हैं।

हामिद ने हारनेवालों के आँसू पोंछे---मैं तुम्हें चिढ़ा रहा था, सच। यह लोहे का चिमटा भला इन खिलौनों को क्या बराबरी करेगा। मालूम होता है, अब क्या, अब बोले।

लेकिन मोहसिन को पार्टी को इस दिलासे से सन्तोष नहीं होता। चिमटे। सिक्का खूब बैठ गया है। चिय हुआ टिक अब पानी से नहाँ छू रहा।

मोहसिन---लेकिन इन खिलौनों के लिए कोई हमें दु तो न देगी ?

महमूद---दुआ ची लिये फिरते हो। उल्टे मार में पड़े। अम्माँ ज़रूर कहूँगी कि मेले में यही मिट्टी के खिलौने तुम्हें मिले ?

हामिद को स्वीकार करना पड़ा कि खिलौनों को देखकर किसी को माँ इतनी खुश न होगो, जितनी दादो चिमटे को देखकर हमीद। तौर पैसों हीं में तो उसे सब कुछ झरना था, और उन पैसों के इस उपयोग पर पछतावे को बिलकुल ज़रत से थी। फिर अब तो चिमटा रुस्तमे-हिन्द हैं और सभी विलौन का बादशाह।

रास्ते में मसूद को भूवे लाये। उसके चार ने केले खाने को दिये । महमुद ने फेल हामिद को साझा बनाया। उनके अन्य मित्र मैं इ ताइवें रह गये। यह उच्च चिमटे का प्रसाद।