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मानसरोवर


समान उन्हें पी जायगी । शर्माजी का मारा उत्साह, सारा अनुराग ठंडा पड़ गया। यह सारी मन की मिठाइयाँ, जो वह महीनों से खा रहे थे, पेट में शुल की भांति चुभने लगी। कुछ कहते सुनते न बना । केवल इतना बोले-सम्पादकों क जीवन बिलकुल पशुओं का जीवन है। सिर उठाने का समय नहीं मिलता । उस पर कार्याधिश्य से इधर मेरा स्वास्थ्य भी बिगड़ रहा है। रात ही से सिर-दर्द से बेचैन हूँ। आपकी माया खातिर करूं?

कामाक्षी देवी के हाथ में एक बड़ा-सा पुलिन्दा था। उसे मेज पर पटककर, 'रूमाल से मुंह पोछकर मृदु स्वर में बोलो-यह तो आपने बड़ी बुरी खबर सुनाई। मैं तो एक सहेली से मिलने जा रही थी। सोचा, रास्ते में आपके दर्शन करतो चलू लेकिन जब आपका स्वास्थ्य ठोक नहीं है, तो मुझे यहाँ कुछ दिन रहकर आपका स्वा- एथ्य सुधारना पड़ेगा। मैं आपके सम्पादन-कार्य में भी आपको मदद करूंगी । आपका स्वास्थ्य स्त्री-जाति के लिए बड़े महत्त्व की वस्तु है । आपको इस दशा में छोड़कर मैं अब जा ही नहीं सकती।

शर्माजी को ऐसा जान पड़ा, जैसे उनका रक्त प्रवाह रुक गया है, नाड़ी छूटी जा रहो है । इस चुहल के साथ रहकर तो जीवन ही नरक हो जायगा । चली हैं कविता करने, और कविता भी कैसी ? अश्लीलता में डूबी हुई । अश्लील तो है हो । बिलकुल सडो हुई, गन्दी। एक सुन्दरी युवतो की कलम से वह कविता काम-वाण थी। इस डाइन को कलम से तो वह परनाले का कीचड है। मैं कहता हूँ, इसे ऐसी कविता लिखने का अधिकार हो क्या है ? वह क्यों ऐसी कविता लिन्नतो है ? क्यों नहीं किसी कोने में बैठकर राम-भजन करती ? आप पूछती हैं-मुझे छोड़कर भाग सकोगे ? मैं कहता हूँ ,आपके पास कोई आयेगा ही क्यो ? दूर से ही देखकर न लम्बा हो जायगा। क्या कविता है जिसका न सिर, न पैर, मात्राओं तक का तो इसे ज्ञान नहीं है; और कविता करती है। कविता अगर इन काया में निवास कर सकती है, तो फिर गधा भी गा सकता है, ऊँट भो नाच सकता है । इस रोड को इतना भी नहीं मालूम कि कविता करने के लिए रूप और यौवन चाहिए, नज़ाकत चाहिए। भूतनी-सी तो आपकी सूरत है, रात को कोई देख ले, तो डर जाय और आप उत्तेजक कविता लिखती हैं! कोई कितना ही क्षुधातुर हो, तो क्या गोबर खा लेगा ? और चुडैल इतना बडा पोथा लेती आई है। इसमें भी वहो परनले का गन्दा कीचड़ होगा।