जाते थे, पर ज्योंही उसने इधर पोठ फेरो और उन्होंने चिलम पौना शुरू किया।
सब दिल में उपमे जलते थे, उसे गालियाँ देते थे ; मगर उस दिन से चैनसिह इतना
दयालु, इतना गमार, इतना सहनशोल हो गया कि लोगों को आश्चय होता था।
कई दिन गुजर गये थे एक दिन सन्ध्या समय चैनसिंह खेत देखने गया । पुर चल रहा था। उसने देखा कि एक जगह नालो टूट गई है, और सारा पानी बहा चला जाता है क्यारियों में पानी बिलकुल नहीं पहुँचता । मगर क्यारी बरानेवाली।
बुढ़िया चुपचाप अठा है उसे जरा भी किक नहा है कि पानी क्यों नहीं आता। पहले यह दशा देखा चनसिंह आपे से बाहर हो जाता । उस औरत की उस दिन की पूरी मजूगे काट लेता और पुर चल नेवालों को घुड़कियां जमाता; पर आज उसे क्रोध नहीं आया। उसने मिट्टी लेकर नालो पाँव दो और खेत में जाकर बुढ़िया से बोला-तू यही बैठा है और पानी सम यहा जा रहा है । पुढ़िया पबहाकर बोलो अमो खुल गई होगी राजा ! मैं अभी जाकर बन्द किये देती हूँ।
यह कहती हुई वह थरथर कापने लगी चेनसिंह ने उसको दिल जोई करते हुए कहा --- भाग मत, भाग मत, मैंने नाली बन्द कर दी है। बुढ़ऊ कई दिन से नहीं दिखाई दिये। कहीं काम पर जाते हैं कि नहों ?
बुढ़िया गद्गद होकर बोली --- आजकल तो खाली हो बैठे है भैया, कहाँ काम नहीं लगता।
चैनसिंह ने नन्न भाव से कहा --- जो हमारे यहाँ लगा दे। थोड़ा-सा सन रखा है, उसे कात दें।
यह कहता हुआ वह कुएँ को ओर चला गया। यहाँ चार पुर चल रहे थे पर इस वक्त दा हकवे वेर खाने गये हुए थे। चेनसिह को देखते ही मजूरों के होश उड़ गये ठाकुर ने पूछा, दो आदमी कहा गये, तो क्या जवाब देंगे। सम-के- सब दाटे जायेंगे। बेचारे दिल में सहमे जा रहे थे । चनसिह ने पूछा-वह दोनों कहाँ चले गये।
किसी के मुंह से आवाज न निकली। सहसा सामने से दोनों मजूर धोतो के एक
कोने में बेर भरे आते दिखाई दिये। खुशखुश बातें करते चले भा रहे थे। चैनसिंह
पर निगाह बड़ो, तो दोनों के प्राण सूख गये। पौव मन-मन-भर के हो गये। अब न