पृष्ठ:मानसरोवर १.pdf/२६४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२७५
लांछन

मिसेज टंडन को छोड़कर और सभी महिलाएं किंग को देखने के लिए उत्सुक यो। किसी ने विरोध किया।

खुरशेद ने द्वार पर साकर ऊँची आवाज से कहा --- तुम जरा यहाँ चले आओ।

हुइ खुला और मिस लीलावती रेशमी साड़ी पहने मुसकिराती हुई निकल आई।

आश्रम में सभाटा छा गया। देवियाँ विस्मित आँखों से लीलावती को देखने लगी।

जुगनू ने माखें चमकाकर कहा --- उन्हें कहाँ छिपा दिया आपने ?

खुरशेद --- छु मन्तर से उड़ गये । आकर गाड़ी देख लो।

जुगनू लपककर गाड़ी के पास गई और खूब देख-भालकर मुंह लटकाये हुए लौटी।

मिस खुरशेद ने पूछा --- क्या हुआ, मिला कोई ?

जुगनू --- मैं यह तिरिया-चरित्र क्या जानें । ( लीलावती को गौर से देखकर ) और मरदों को साड़ी पहनाकर माखों में धूल झोक रही हो ! यही तो है, वह शतवाले साहब!

खुरशेद --- खूब पहचानती हो ?

जुगनू --- हां-हाँ, क्या अन्धी हूँ ?

मिसेज टडन --- क्या पागलौ सी बातें करती हो जुगनू, यह तो डाक्टर लीलावती है।

जुगनू-( उँगली चमकाकर ) चलिए-चलिए, लीलावती हैं ! साड़ी पहनकर औरत बनते लाज भी नहीं आती ! तुम रात को नहीं इनके घर थे ?

लीलावती ने विनोद-भाव से कहा --- मैं कन इनकार कर रही हूँ। इस वक्त लीलावती हूँ ! रात को विलियम किंग बन जाती हूँ। इसमें बात ही क्या है।

देवियों को अब यथार्थ की लालिमा दिखाई दी। चारों तरफ क्रककहे पड़ने लगे। कोई तालियां बजाती थीं, कोई डाक्टर लीलावती की गरदन से लिपटो जाती थी, कोई मिस खुरशेद की पीठ पर थपकियाँ देती थी। कई मिनट तक इ-इक मचता रहा। जुगनू का मुंह उस लालिमा में बिलकुल परा-सा निकल आया । समान बदाहो गई। ऐसा चरका उसने कभी न खाया था । इतनी जलील कभी न हुई थी।

मिसेज मेहरा ने डोट बताई --- अब बोलो दाई, लगी मुँह में कालिख कि नहीं