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मानसरोवर


दिया भौर एक क्षण में विलियम किंग ने कमरे में कदम रखा। उसकी आँखें चड़ी हुई मालूम होती थी और कपड़ों से शराब की गन्ध आ रही थी। उसने बेधड़क मिस खुरशेद को छाती से लगा लिया और बार-बार उनके कपोलों के चुम्बन लेने लगा।

मिस खुरशेद ने अपने को उसके कर-पाश से छुड़ाने को चेष्ठा करके कहा --- चलो हटो, शराब पीकर आये हो।

किंग ने उन्हें और चिमटाकर कहा-आज तुम्हें भी पिलाऊँगा प्रिये ! तुमको पीना होगा। फिर हम दोनों लिपटकर सोयेंगे। नशे में प्रेम कितना सजीव हो जाता है, इसकी परीक्षा कर लो।

मिस खुरशेद ने इस तरह जुगनू की उपस्थिति का उसे सकेत किया कि जुगनू की नज़र पड़ जाय ; पर किंग नशे में मस्त था। जुगनू की तरफ देखा ही नहीं।

मिस खुरशेद ने रोष के साथ अपने को अलग करके कहा-तुम इस बक आपे मे नहीं हो। इतने उतावळे क्यों हुए जाते हो ? क्या मैं कहीं भागी जा रही हूँ?

किंग --- इतने दिनों से चोरों की तरह आया हूँ, आज से मैं खुले-खज़ाने आऊँगा।

खुरशेद --- तुम तो पागल हो रहे हो। देखते नहीं हो, कमरे में कौन बैठा हुआ है।

किग ने हकबकाकर जुगनू की तरफ देखा और झिझकर बोला- यह बुढ़िया न्यहाँ का आहे ? तुम यहाँ क्यों आई बुड्ढों ! शैतान की बच्ची ! यहाँ भेद लेने आतो है ? हमको बदनाम करना चाहती है ? मैं तेरा गला घोट दंगा, ठहर, भागती कहाँ है, ठहर, भागती कहाँ है ? मैं तुझे जिन्दा न छोहूँगा।

जुगनू बिल्ली की तरह कमरे से निकली और सिर पर पांव रखकर भागी। उधर कमरे से कहकहे उठ-उठकर छत को हिलाने लगे।

जुगनु उसी वक्त मिसेज़ टंडन के घर पहुँची। उसके पेट में धुलबुले उठ रहे थे ; पर मिसेज टंडन सो गई थीं। वहाँ से निराश होकर उसने कई दूसरे घरों को कुण्डी खटखटाई ; पर कोई द्वार न खुळा और दुखिया को सारी रात इस तरह काटनी पड़ी, मानों कोई रोता हुआ बच्चा गोद में हो। प्रातःकाल वह आश्रम में जा कूदी।

कोई आध घण्टे में मिसेज टंडन भी आई। उन्हें देखकर उसने मुँह फेर लिया।

मि० टडन ने पूछा --- रात क्या तुम मेरे घर गई थीं? इस वक्त मुझसे महाराज कहा।