दें कि यह असम्भव है। वे उसी गुस्से में दरवाजे तक आये ; लेकिन प्रेमा को
रोते देखकर नम्र हो गये। इस युवक के प्रति प्रेमा के मन में क्या भाव थे यह
उनसे छिपा न रहा। वे स्त्री-शिक्षा के पूरे समर्थक थे। लेकिन इसके साथ हो कुल-
मर्यादा की रक्षा भी करना चाहते थे। अपनी हो जाति के सुयोग्य वर के लिए अपना
सर्वस्व अर्पण कर समते थे लेकिन उस क्षेत्र के बाहर कुळोन से कुलीन और योग्य-
से योग्य वर की कल्पना भी उनके लिए असह्य थी। इससे बड़ा अपमान वे सोच ही
न सकते थे।
उन्होंने कठोर स्वर में कहा--आज से कालेज जाना बन्द कर दो। अगर शिक्षा कुल-मर्यादा को डुबाना ही सिखाती है, तो कुशिक्षा है।
प्रेमा ने कातर कठ से कहा --- परीक्षा तो समीप आ गई है।
लालाजी ने दृढ़ता से कहा --- आने दो।
और फिर अपने कमरे में जाकर विचारों में डूब गये।
( ४ )
छ. महीने गुज़र गये।
लालाजी ने घर में आकर पत्नी को एकान्त में बुलाया, और बोले --- जहां तक मुझे मालूम हुआ है, शव बहुत ही सुशील और प्रतिभाशाली युवक है। मैं तो समझता हूँ, प्रेमा इस शोक में घुल-घुलकर प्राण दे देगी। तुमने भो समझाया, मैंने भी समझाया, दुसरों ने भी समझाया ; पर उस पर कोई असर हो नहीं होता। ऐसो दशा में हमारे लिए और क्या उपाय है।
उनकी पत्नी ने चिन्तित-भाव से कहा --- कर तो दोगे लेकिन रहोगे कहाँ ? न जाने कहाँ से यह कुलच्छनो मेरो कोख में आई।
लालाजी ने भवें सिकोड़कर तिरस्कार के साथ कहा --- यह तो हज़ार दफ़ा सुन
चुका , लेकिन कुल-मर्यादा के नाम को कहाँ तक रोयें। चिड़िया का पर खोलकर यह
आशा करना कि वह तुम्हारे आंगन में ही फुदकतो रहेगी, भ्रम है। मैंने इस प्रश्न
पर ठण्डे दिल से विचार किया है, और इस नतीजे पर पहुचा हूँ कि हमें इस आपद्धर्म
को स्वीकार कर लेना हो चाहिए। कुल-मर्यादा के नाम पर मैं प्रेमा को हत्या
नहीं कर सकता। दुनियाँ हँसती हो, हँसे; मगर वह जमाना बहुत जल्द आनेवाला
है, जब ये सभी बन्धन टूट जायेंगे। आज भी सैकड़ों विवाह जात-पात के बन्धनों को