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मानसरोवर

उसकी माता ने पूछा --- क्या तुझे अब तक नींद न आई ! मैंने तुझसे कितनी पार कहा कि थोड़ा बहुत घर का काम-काज किया ,कर, लेकिन तुझे किताबों हो से फुरसत नहीं मिलती। चार दिन में तू पराये पर जायगी, कौन जाने कैसा घर मिले -भगर कुछ काम करने की आदत न रही, तो कैसे निबाह होगा ?

प्रेमा ने भोलेपन से कहा --- मैं पराये घर जाऊँगी ही क्यों ?

माता ने मुसकिराकर कहा --- लड़कियों के लिये यही तो सबसे बड़ी विपत्ति है, -बेटो। मां-बाप की गोद में पलकर ज्योहो सयानी हुई, दूसरों को हो जाती हैं। अगर अच्छे प्राणी मिले, तो जीवन आराम से कर पाया, नहीं रो-रोकर दिन काटना पड़ा। सब कुछ भाग्य के अधीन है। अपनो विरादरी में तो मुझे कोई घर नहीं भाता। कहीं लड़कियों का आदर नहीं; लेकिन करना तो विरादरी में ही पड़ेगा। न जाने यह जात-पात का बन्धन कब टूटेगा ?

प्रेमा हरते-डरते बोली --- कहीं कहीं तो विरादरी के बाहर भी विवाह होने लगे हैं।

उसने कहने को कह दिया, लेकिन उसका हृदय कांप रहा था कि माताजी कुछ भांप न जाय ।

माता ने विस्मय के साथ पूछा --- क्या हिन्दुओं में ऐसा हुआ है ?

फिर उसने आप-हो-आर उस प्रश्न का जवाब भी दिया --- अगर दो चार जगह ऐसा हो भी गया, तो उससे क्या होता है ?

प्रेमा ने इसका कुछ जवाब न दिया, भय हुआ कि माता कही उसकी आशय समझ न जायें। उसका भविष्य एक अँधेरी खाई की तरह उसके सामने मुंह खोले -खड़ा था, मानों उसे निगल जायग ।

उसे न जाने कब नींद आ गई।

( ३ )

प्रातःकाल प्रेमा सोकर उठी, तो उसके मन में एक विचित्र साहस का उदय हो गया था। सभी महत्वपूर्ण फैसले हम आकस्मिक रूप से कर लिया करते हैं, मानों कोई देवी शक्ति हमें उनकी ओर खींच ले जाती है। वही हाजत प्रेमा की भी। कल तक वह माता-पिता के निर्णय को.मान्य समझती थी; पर संकट को सामने देखकर उसमें उस वायु को हिम्मत पैदा हो गई यो, जिसके सामने कोई पर्वत आ